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________________ १६० न प्रतिनिधि और इस कारण सब्जेकृ कमेटीमें नहीं चुनी जा सकतीं; और जबतक नई सब्जेकृ कमेटी (विषय निर्धारण समिति) नियत न हो, काम नहीं हो सकता । इसपर कहा गया कि यह असङ्गत विषय है, इस कमेटीको इस प्रश्न उठानेका अधिकार नहीं है, यह कमेटी महासभाकी बनाई हुई है और यह प्रश्न यदि हो सकता है तो महासभा के अधिवेशन में उपस्थित हो सकता है । सभापति महोदयने इस युक्तिसे सहमत होकर यह निर्णय किया कि यह प्रश्न नहीं उठाया जा सकता और काम प्रारम्भ होना चाहिए; किन्तु पण्डित धन्नालाल - जी काशलीवाल, पण्डित वंशीधर और एक दो और सदस्य, उच्च स्वरसे, बोलते ही रहे और कभी अनुचित शब्दोंका व्यवहार भी करते रहे । सभापति महोदयके बारम्बार सविनय प्रार्थना करनेपर भी चुप नहीं हुए और पण्डित वंशीधर ने सभापति महोदयको यहाँतक कहने पर मजबूर कर दिया, कि यदि पण्डित वंशीधरजीको इस विषय में इतना हठ है और वह सभापतिका फैसला और सभापतिकी प्रार्थनाको भी नहीं मानते तो वह सभाको छोड़ दें और आगे कामको चलने दें। इसपर पण्डित धन्नालाल और उनके आठ दस अनुयायी कोलाहल करते हुए खड़े हो गये और वहीं खड़े रहकर देरतक शोर मचाते रहे। बादको दूसरे कमरेमें जहाँ पण्डित धन्नालाल ठहरे हुए थे, चले गये। उनके पीछे महामन्त्री लाला भगवानदासजी और शनैः शनैः उनके दफ़रके लोग भी पण्डित धन्नालालजी के स्थानपर चले गये; और सभापति महोदय के बुलानेपर भी नहीं श्रये । रूठको मनाने और फिर बुलाने का कार्य घटोतक होता रहा । सभापति जैनहितैषी । Jain Education International [ भाग १५ के अतिरिक्त अन्य प्रतिष्ठित महाशय कई बार इस रुष्ट मण्डलको मनाने गये किन्तु वे लोग नहीं आये । जहाँतक याद पड़ता है, इस काम में रायबहादुर लाला घमण्डीलाल, लाला रामस्वरूपजी सभापति स्वागतकारिणी समिति, लाला तिलोकचन्द दिल्लीवाले, लाला शिब्बामल अम्बालेवाले, हकीम कल्याणराय और ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने भी भाग लिया था । इस प्रकार जब रातके करीब दो बज गये तब ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीसे व्यवस्था माँगी गई और उनका यह आदेश होनेपर कि महासभा के अधिवेशनमें सब्जे कमेटीका चुनाव फिरसे किया जाय, सब लोग अपने अपने खानपर चले गये । दूसरे दिन महासभा साहू जुगमन्दिरदासजीने, जो गत रात्रिको सभापति महोदय के सहायकरूपसे सब काम करते रहे थे, रात्रिका विवरण संक्षेपसे सुनाया और कहा कि सब्जेकृ कमेटी नई चुनी जाय । लाला जग्गीमलजी दिल्ली निवासीने इसका अनुमोदन किया । लाला जुग्गीमलजी उसी दिन दिल्लीसे पधारे थे और गत दिवसकी कार्यवाहीमें उपस्थित न थे । अनुमोदन होते ही एक ब्रह्मचारी महाशयने खड़े होकर जैनधर्मकी जयध्वनिके साथ यह कह दिया कि यह प्रस्ताव स्वीकृत हुआ, और उपस्थित प्रतिनिधि समाजको यह अवसर ही नहीं दिया गया कि कोई इस विषयमें कुछ कह सके ! हमारे इस प्रश्न करने पर कि यह बतला दिया जाय कि सब्जेकृ कमेटी में महासभा के सदस्य और प्रतिनिधि ही चुने जायँगे या अन्य उपस्थित महाशय भी, महामन्त्रीजीने उत्तर दिया कि अन्य प्रतिष्ठित महाशय भी चुने जा सकते हैं। तब हमने कहा कि यह बात For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522889
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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