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________________ अङ्क ६ ] बहुत कुछ सम्भावना हो सकती है। देवसेन नामके और भी कई श्राचार्य हो गये हैं । एक 'देवसेन' माथुरसंघी श्रमिगति (धर्मपरीक्षाके कर्ता) के पड़दादा गुरुके भी गुरु थे और इसलिए उनका समय ० की 8 वीं शताब्दी ब बैठता महासभा के कानपुरी अधि है । दूसरे देवसेन श्रादिपुराणके कर्ता जिनसेनाचार्य के समकालीन पाये जाते हैं, जैसा कि जयधवला टीकाकी प्रशस्तिके अन्तमें दिये हुए निम्न वाक्यके 'श्रीदेवसेनार्चिताः' पदसे ध्वनित होता है और यह भी पाया जाता है कि वे एक बड़े पूज्य श्राचार्य थे सर्वज्ञ प्रतिपादितार्थगण महासभा के कानपुरी अधिवेशनका कच्चा चिट्ठा । Jain Education International १७७ है । यह विषय और भी अच्छी तरहसे स्पष्ट हो जाय इसी लिए हमें इतना सूचित करने की जरूरत पड़ी है । भृत्सूत्रानुटीकामिमां । "येऽभ्यस्यन्ति बहुश्रुताः श्रुतगुरुं सम्पूज्यवीरं प्रभुं ॥ ते नित्योज्वल पद्मसेनपरमाः (?) श्रीदेवसेनार्चिताः । भासन्ते रविचन्द्रभासिसुतपाः श्रीपालसत्कीर्तयः ॥ श्री जिनसेनाचार्य ने पात्र केशरी (विद्यानन्द स्वामी ) का श्रादिपुराण में जिस ढङ्गसे उल्लेख किया है उससे विद्यानन्द खामी जिनसेनके समकालीन ही जान पड़ते हैं। जिनसेनाचार्य एक अच्छे वृद्ध श्राचार्य हुए हैं। सम्भव है कि नयचक्र उन्हीं देवसेनाचार्यका बनाया हुआ हो जो जिनसेनाचार्य तथा विद्यानन्द स्वामीके समकालीन थे । इनका भी समय विक्रमकी हवीं शताब्दी होता है । क्योंकि जयधवला टीका शक सं० ७५६ ( वि० २६४ ) में बनकर समाप्त हुई है । श्रतः विद्वानोंको अन्तरंग साहित्यकी जाँच मादिके द्वारा इस विषय की अच्छी खोज करनी चाहिए कि यह 'नयचक्र' ग्रन्थ कौनसे देवसेन श्राचार्यका बनाया हुआ ३ वेशनका कच्चा चिट्ठा | (लेखक – श्रीयुत् बाबू अजितप्रसादजी वकील, लखनऊ 1) भारतवर्षीय दि० जैन महासभाका पश्चीसवाँ अधिवेशन कानपुरमें हो चुका । इस अधिवेशन पर जैन जातिहितैषयोंकी बहुत बड़ी श्राशा लगी हुई थी और महीनों पहले से इसके दिन गिने जा रहे थे । इस अधिवेशन के सभापति थे, वयोवृद्ध, सौम्यमूर्ति साहु सलेखचन्दजी, नजीबाबाद । चैत्र बदी ७ को सभापति महोदय के स्वागतका दृश्य अपूर्व था । कानपुर निवासी जैन और श्रजैन जनताने एक मन होकर जिस प्रकार उनका सम्मान किया है, उससे प्रत्येक जैनको आनन्द और श्रात्मगौरवका अनुभव होता था । चैत्रबदी = का रथोत्सव बड़ी शान के साथ निकाला गया था और उससे जैन जातिके गौरवकी बहुत कुछ घोषणा होती थी । उत्सव की समाप्ति पर अभिषेक और पूजन हो जानेके बाद, दिल्ली निवासी श्रीयुत मिस्टर चम्पतरायजी, बैरिस्टर हरदोईने जैन साहित्य प्रदर्शनका द्वारोद्घाटन करते हुए जैनोंके दर्शन, न्याय और साहित्यका महत्व बड़े ही अच्छे ढंग से दर्शाया। रात्रिको फिर आपका व्याख्यान सभामण्डपमें, जो ८०x१०० फीट के साफ़ सुथरे शामियानेके नीचे बनाया गया था, रायबहादुर लाला द्वारिकाप्रसादजी, हढौरके सभापतित्वमें "जैनदर्शन" पर हुआ । इस व्याख्यानमें बैरिस्टर साहबने प्रायः घंटेतक, जैन सिद्धान्त For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522889
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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