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________________ जैनहितैषी। भाग १५ उत्तम ज्ञान प्राप्त किया होता । ऐसे पर दूसरे धर्मवाले समा गये हैं, परन्तु ब्राह्मणों के अभावसे ही इस समय भक्ति- वे उसी जन्ममें हिन्दू नहीं कहलाये। मार्ग प्रधान हो रहा है। जब हम पाखण्ड, हिन्दू-जगत् एक समुद्र है। उसके पेटमें दम्भ, मद, माया आदि पापोंके साथ सारा कूड़ा-कर्कट आकर साफ़ हो जाता असहकार करके जो कि आधुनिक सर- है-शान्त हो जाता है। ऐसा बराबर कारमें अनेक रूपोंमें प्रकट हो रहे हैं, होता रहा है। इटली, ग्रीस आदि देशों आत्मशुद्धि करेंगे, उस समय शायद हमें के लोग आकर हिन्दूधर्ममें समा गये हैं, कोई शास्त्रदोहन करनेवाला संस्कृत . परन्तु उन्हें किसीने हिन्दू बनाया नहीं। पुरुष मिल जाय । तबतक हमें सरल कालान्तरमें ऐसी घटती बढ़ती होती ही भावसे मूल तत्त्वोंको पकड़े हरिभक्त रही है। हिन्दूधर्म ईसाई और मुसलमान होकर विचरना चाहिए । इसके सिवा धर्मोंके समान दूसरे धर्मवालोको यह और कोई मार्ग नहीं है। निमन्त्रण नहीं देता कि तुम हमारे धर्ममें ___ "गुरु बिना ज्ञान नहीं होता ।" इसमें आकर मिल जाओ। उसका आदेश है सन्देह नहीं कि यह एक सुवर्णमय वाक्य कि सबको अपने अपने धर्मका ही पालन है। परन्तु इस समय तो गुरु मिलना करना चाहिए। सिस्टर निवेदिता जैसी ही कठिन हो रहा है। सद्गुरुके अभावमें विदुषी हिन्दूधर्ममें आ गई, फिर भी हम चाहे जिसको गुरु बनाकर संसारसागर. उसे हिन्दूके रूपमें नहीं पहचानते । साथ के बीचमें डूब मरना बुद्धिमानीका कार्य ही उसका बहिष्कार या तिरस्कार भी नहीं है। जो तारे वही गुरु है। जो स्वयं ही नहीं करते। हिन्दूधर्ममें किसीके लिए तरना नहीं जानता वह दूसरोंको क्या 'पानापन्त' नहीं है। परन्तु उस धर्मका तारेगा? ऐसे तारनेवाले यदि कहीं हो पालन सब कोई कर सकता है। भी तो वे सुलभ नहीं हैं। ___वर्णाश्रम एक 'कायदा' (कानून) है। अब ज़रा वर्णाश्रम पर आइये । चार उसका व्यावहारिक रूप जाति है। वर्णोके सिवा और कोई वर्ण नहीं है। जातियों में बढ़ती घटती होती रहती है। मेरी मानता यही है कि वर्ण जन्मसे है। जातियोंकी उत्पत्ति और नाश हुश्रा ही जो ब्राह्मण कुलमें जन्मा है वह ब्राह्मण करता है। हिन्दूधर्मके बाहर यदि कोई रहकर ही मरेगा। गुणसे वह भले ही होना चाहे तो स्वयं ही हो सकता है, अब्राह्मण हो जाय, परन्तु उसका ब्राह्मण किसी दूसरेके करनेसे नहीं। परन्तु वह शरीर ब्राह्मण ही रहेगा। जो ब्राह्मण 1 जातिसे बाहर किया जा ब्राह्मण-धर्मका पालन नहीं करता, वह सकता है । जाति-बहिष्कार एक प्रकारअपने गुणों के अनुसार शुद्र योनिमें और का दण्ड है और यह सब जातियोंके पशु योनिमें भी जन्म लेता है। मेरे सदृश - ब्राह्मण और क्षत्रिय-धर्म पालन करने- हाथमे होना चाहिए। वाले वैश्यको यदि फिर जन्म लेना पड़े, पानी-भोजन-व्यवहार और बेटी. तो दूसरे भवमें भले ही ब्राह्मण या क्षत्रिय व्यवहार ये हिन्दूधर्मके आवश्यक चिह्न जन्म मिले, परन्तु इस जन्ममें तो वैश्य नहीं हैं। परन्तु हिन्दूधर्ममें संयमको प्रधान ही रहना पड़ेगा। और यह बात है भी पद दिया गया है। इस कारण उसके यथार्थ । यद्यपि हिन्दूधर्ममें समय समय पालनेवालोंके लिए पानी-भोजम-विवाह ना जा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522888
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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