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________________ अनाहती। [भाग १५ कानों तक बराबर पहुँचते रहे और उन्हें रण करें और कराएँ, वे सब जैनहितैषीके पढ़ने को मिलते रहे। परन्तु जान पड़ता विचारोंको फैलानेमें सहायक हो सकते है, इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया गया। हैं और समाजमें बहुत कुछ जाप्रति प्रतः हमें अपने पाठकोंका ध्यान फिरसे उत्पन्न कर सकते हैं। इस वर्ष हितैषीमें इस ओर आकर्षित करते हैं। आशा है, वे जैनतत्त्वोंके प्रतिपादक और जैनसिद्धान्तोंज़रूर इस बार ध्यान देंगे और उसे के रहस्यका उद्घाटन करनेवाले कुछ कार्यमें परिणत करनेका भरसक यत्न दूसरे महत्त्वके लेख भी निकालनेका हमारा करेंगे । जैनहितैषोको अपने ग्राहकोंके विचार है; और उसका प्रारम्भ इसी बढ़ानेकी इतनी चिन्ता नहीं हैं जितनी अंकसे, 'उपासना-तत्त्व' नामके लेख द्वारा चिन्ता अपने विचारोंकों फैलाकर किया गया है। आशा है, इन लेखोसे 'सद्विचारकोंके उत्पन्न करनेकी है। और जैन-अजैन सभीको यथार्थ वस्तुस्थितिके इसलिए, जो लोग स्थानीय सभा सोसा- समझने में बहुत कुछ सहायता मिलेगी। इटियोंमें जैनहितैषीको पढ़कर सुनावे, अन्तमें हम अपने सहदय पाठकोसे दूसरोंको उसके पढ़नेकी प्रेरणा करें, इतना और निवेदन कर देना ज़रूरी समउन्हें अपना अंक पढ़नेके लिए दें, जैन- झते हैं कि पिछले साल जैनहितैषीके हितैषीके सम्बन्धमें अपने सद्भाव प्रगट सम्पादन-कार्यमें उन्हें जो जो त्रुटियाँ करें, अपने इष्ट मित्रादिकोको उसका मालूम हुई हो अथवा जिन जिन गुणपरिचय करावे, असमर्थौके पास उसे दोषोंका अनुभव हुमा हो उन सबको वे अपनी ओरसे बिना मूल्य भिजवाएँ और कृपाकर हमारे पास.शीघ्र लिख भेजनेका इसी तरह उसके ख़ास ख़ास लेखों तथा कष्ट उठाएँ, जिससे हम उनपर विचार विचारोंको अलग पुस्तकाकार छपवाकर कर अपनी प्रवृत्तिमें यथोचित फेरफार उन्हें बिना मूल्य या अल्प मूल्यमें वित- कर सके। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522885
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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