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________________ अङ्क ९] विविध-प्रसङ्ग। २७३ तक हम कुछ पापकर्मों में पड़े हुए हैं तबतक तो अन्यायसे भरा हुआ, विवेकरहित और हिन्दुस्तान मंदभागी ही रहेगा । मैं अंत्यजोंकी अधार्मिक ही मालूम होता है । इसीसे अंत्यजको सेवा करके संपूर्ण कौम (जातिसमूह ) की सेवा कर मैं अपनेको पवित्र हुआ मानता हूँ और करता हूँ, ऐसी मेरी मान्यता है । जिस प्रकार अनेक रीतिसे मर्यादामें रहनवाले हिन्द-संसाअंत्यज दुखी हैं उस प्रकार दूसरे भी हैं परंतु रको इस दोषसे निकल जानेकी विनती ही अन्त्यजॉके ऊपर हम तो धर्मके नामसे डाका किया करता हूँ। इस बहनसे भी. जिसने सरल डाल रहे हैं । अतः इस अधर्ममेंसे निकल जाना और दूसरोंको निकल जानेकी सूचना _भावसे ऊपरका पत्र लिखा है, मेरी विनती है करना, यह एक चस्त हिन्दके तौर पर मैं कि वह अपनी 'उत्तम शक्तिको और अपने अपना विशेष कर्तव्य मानता हूँ । अंत्यजोंके परिचितोंके प्रयत्नको पूरी तौरसे लगाकर हिन्दू दुःखका मुकाबला प्रजाके दूसरे किसी भी संसारको इस अस्पृश्यताके पापबोझमेंसे छुड़ानेमें विभागके दुःखके साथ हम नहीं कर सकते। भागीदार बने।" .. अंत्यज अस्पृश्य हैं, ऐसा धर्म हम कैसे मानते हैं, यह मेरी बुद्धि ग्रहण नहीं कर सकती । और ९-समयोपयोगी कार्य। . जब मैं इसका विचार करता हूँ तब मेरा हृदय सहयोगी भारतमित्रसे मालूम हुमा कि काँपता है । यह अस्पृश्यता हिन्दूधर्मका अंग हालमें खंडेलवाल महासभाका जो अधिवेशन कभी नहीं हो सकती, ऐसा मेरा आत्मा साक्षी दिल्लीके रईस ला० रघुमलजीके सभापतित्वमें देता है । इतने वर्षोंतक अज्ञानतावश उन्हें हुआ है उसमें १५४ परिवारों ( कुटुम्बों) को ( अंत्यजोंको ) अस्पृश्य गिनकर हिन्दू संसारने जो प्रायः १३२ वर्षसे जातिच्युत थे, जातिमें पापका एक बड़ा भारी पुंज जमा किया शामिल कर लिया गया है, बोर्डिंग हाउसोंके है, जिसको दूर करनेके लिये संपूर्ण जीवन अर्पण लिये सभास्थानपर ही एक लाख पंद्रह हजारका करना यह मुझे जरा भी अधिक मालूम नहीं पड़ता चंदा हुआ जिसमें एक लाख रुपया सभापतिसाऔर मैं केवल इसी एक कार्यके अंदर अपनेको हबने दिया है, और एक स्त्री श्रीमती नारायणी नहीं रोक सकता, इतनी बातका मुझे दुःख रहा बाईको, स्त्रीशिक्षापर एक सुन्दर निबन्ध पढ़नेके करता है । इसमें अंत्यजोंके साथ जीमन (भोजन)- उपलक्षमें १५०) रुपये पुरस्कारस्वरूप दिये व्यवहार तथा बेटीव्यवहार रखनेका सवाल गये। इन सब समयोपयोगी कार्योंको मालूम जरा भी उत्पन्न नहीं होता, केवल छूने और नहीं । करके हमें बहुत प्रसन्नता हुई। आशा है हमारे छूनेका ही प्रश्न है । अंत्यज मुसलमान हो जाय जैनसमाजकी भी भिन्नभिन्न सभाएँ इससे कुछ तो मैं छूऊँ, ईसाई हो जाय तो मैं उसे सलाम शिक्षा ग्रहण करेंगी और खासकर अपने चिरकरूँ, जिस ईसाई अथवा मुसलमानको वह छूवे कालसे बिछुड़े हुए (जातिच्युत किये हुए) उसके छूनेमें पाप न मानें परंतु उस अंत्यजको भाईयोंको फिरसे गले लगाने और उन्हें अपनी छूनेमें मुझे संकोच होता है ! यह विचार मुझे जातिमें शामिल करनेकी उदारता दिखलाएँगी, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522882
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size5 MB
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