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________________ अङ्क ९] लायब्रेरी। बौद्धोंके अनेक बड़े बड़े पुस्तकालय नष्ट हो गये। गई। किन्तु अबसे कोई ५०-६० वर्ष पहले यह बात मुसलमानोंके ही इतिहाससे सुव्यक्त राणा जंगबहादुरके समयसे फिर पुस्तकालय होती है कि तदन्तपुरी-विहारके पुस्तकालयको बनाया जा रहा है। उसमें लगभग १६ हजार बख्तियार खिलजीने जला दिया था। इसी तरह पुस्तकें हैं और लगभग २००० पुस्तकें ताड़पत्रों नालन्द और विक्रमशीलके पुस्तकालय भी नष्ट पर लिखी हुई हैं । वे प्रायः बंगालविहारके हो गये । बंगालके प्रधान गौरव जगद्दल विहारकी भागे हुए भिक्षुओं द्वारा ही वहाँ गई थीं। यह भी यही दशा हुई और जान पडता है. भोज -पुस्तकालय बड़ी सावधानीसे रक्खा जाता है। महाराजके पुस्तकालयकी भी यही गति हुई। उसके लिए महाराजा वीर शमशेरजंग राणाने सौभाग्यसे उस समय अनेक बौद्ध भिक्षु पुस्तकें एक टाबर बनवा दिया है। उसका एक विशाल लेकर नेपाल और तिब्वतको भाग गये थे। इसके कमरा और उसके चारों ओरकी दालाने पोथिसिवाय इसके पहले भी भूटानके लोग जमद्दल योंसे ठसाठस भरी हुई हैं । उसमें अँगरेजी विहारसे १० हजार ग्रन्थ अनुवाद करके ले गये पुस्तकोंका भी संग्रह है। १६००० ग्रन्थ संस्कृथे। इसीसे हमें इस समय पता लगता है कि तके हैं । भूटान देशके लगभग १०००० और बंगाल एक समय बौद्ध देश था। चीन देशके ३-४ हजार ग्रन्थ हैं । चित्र भी बहुत ___“बंगालके सेनवंशीय राजा बल्लालसेनकी भी र हैं और वे तरह तरहके हैं;-विशेषतः तन्त्रएक लायब्ररी थी। उस समयके भी ब्राह्मणोंके यहाँ । " साहित्यके । यह पुस्तकालय महाराजका अक्षय पुस्तकालय थे, क्योंकि उनमें अनेक ग्रन्थोंके : - यश है। इनके सिवाय नेपालमें और भी अनेक कोटेशेन ( उद्धरण ) पाये जाते हैं । यदि । लोगोंके यहाँ अनेक ग्रन्थ हैं, जिनका पता पाना ग्रन्थ न होते तो इस प्रकारके कोटेशन कैसे न दिये जाते ? वे सब पुस्तकालय कहाँ गये? "महाराजा रणजीतसिंहके पुरोहित मधुसूदनने हमारा देश बड़ा बुरा है । हमारे यहाँ पुस्तकें पुस्तकोंका बड़ा संग्रह किया था। उनके पुत्रोंके नहीं रहती-अग्नि है, वृष्टि है, जल है, नदियोंके उत्तराधिकारियोंने उन पुस्तकोंका क्या किया, पूर हैं और सबसे बड़े शत्रु चूहे और दीमक कुछ पता नहीं। . . हैं-और एक शत्रु हैं पण्डितोंके मूर्ख पुत्र । इन __“ राजपूतानेके प्रायः सभी राजाओंके किलोंमें सबके द्वारा अनेक प्राचीन पुस्तकालय नष्ट हो । गये । पर इस समय भी जो जो हैं, उनका कुछ। एक एक पोथीखाना ' है। उनमेंसे अनेक वर्णन सुन लीजिए। पुस्तकालयोंमें २००० से सेकर ६००० तक ___“ नेपालमें मुसलमानोंका उपद्रव नहीं हुआ। पुरु , पुस्तकें हैं । जब अलाउद्दीन खिलजीने देश पर वहाँके निवार राजे बहुत काल तक पुस्तकसंग्रह अधिकार किया तब गुजरातके जैन लोग अपने करते रहे हैं। उनके पुस्तकालयमें १४०० ग्रन्थोंको लेकर जैसलमेरे भाग गये। वे सब १५०० वर्षके पुराने ग्रन्थ हैं। उस देशमें थोड़ेसे . ग्रन्थ वहाँ अब भी बचे हुए हैं । मैसूर और त्रावप्रयत्नसे पुस्तकें बहुत समय तक टिकती हैं। णकोरमें भी बहुत ग्रन्थ हैं । वहाँके राजाओंके. जब गोरखा राजाओंने नेपालपर अधिकार किया भी बड़े बड़े पुस्तकालय हैं । तंजौरकी लायब्रेरी सब निवार राजाओंके पुस्तकालयकी लूट हो बहुत पुरानी है । छत्रपति शिवाजीके पिता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522882
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size5 MB
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