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________________ अङ्क ७-८] जगतकी रचना और उसका प्रबन्ध । Arr.AARArwww.inwwwwwwwwwwwwwwwapnaniwwwwwwwwwwwwwwwon होता तब तो ऐसी अंधाधुंधी कभी भी न होती। सान । इसीसे कभी कभी ऐसी गड़बड़ी भी हो इस स्थान पर यदि यह कहा जावे कि उसकी जाती है कि जहाँ जरूरत नहीं होती वहाँ तो तो इच्छा ही यह थी कि इस वर्ष इस खेतमें बारिश बरस जाती है और जहाँ जरूरत होती अनाज पैदा न हो या कमती पैदा हो । परन्तु है वहाँ एक बूंद भी नहीं पड़ने पाती । किसी यदि यही बात होती तब तो वह सारी फसल भर प्रबंधकर्ताके न होनेके कारण ही तो मनुष्य, अच्छी अच्छी बारिशें बरसा कर उस खेतीको कुएँ खोद कर और नहर आदि निकाल कर, इतनी बड़ी ही क्यों होने देता ? बल्कि वह तो यह प्रबंध कर सका है कि यदि बारिश न बरसे उस खेतके किसानको ही इतना साहस न करने तो भी वह अपने खेतोंको पानी देकर सब कुछ देता जिससे वह उस खेतमें बीज बोवे । यदि अनाज पैदा कर लेवे। किसान पर उस प्रबंधकर्ताका काबू नहीं चल इसके सिवाय जब प्रत्येक धर्म और पंथके सकता था और बीजके बोये जानेको वह नहीं कथनानुसार संसारमें इस समय पापोंकी ही • रोक सकता था तो खेतमें पड़े हुए बीजको ही अधिकता हो रही है और नित्य ही भारी भारी 'न उगने देता । यदि बीज पर भी उसका काबू अन्याय देखने में आते हैं, तब यह कैसे माना . नहीं था तो कमसे कम बारिशकी एक बूंद भी जा सकता है कि जगतका कोई प्रबंधकर्ता भी उस खेतमें न पड़ने देता, जिससे वह बीज ही अवश्य है, जिसकी आज्ञाओंको न माननेके कारण जल भुन कर वहीं नष्ट हो जाता । और यदि ही ये सब पाप और अपराध हो रहे हैं । संभव संसारके उस प्रबंधकर्ताकी यही इच्छा होती है कि यहाँ पर कोई भाई ऐसा भी कहने लगें कि इस वर्ष अनाज पैदा ही न हो या कमती कि राजाकी आज्ञा भी तो भंग होती रहती है । पैदा हो, तो वह केवल उन्हीं खेतोंको खुश्क न उनको यह विचारना चाहिये कि राजा न तो करता जो बारिशके ऊपर ही निर्भर हैं बल्कि सर्वका ज्ञाता सर्वज्ञ ही होता है और न सर्वउन खेतोंको भी जरूर खुश्क करता, जिनमें शक्तिमान् । इसलिये न तो उसको सर्व प्रकारक नहरसे पानी आता है । परन्तु देखनेमें यही अपराधों तथा अपराध करनेवालोंका पता लग आता है कि जिस वर्ष बारिश नहीं होती या सकता है और न वह सर्व प्रकारके अपराधोंको कमती बारिश होती है उस वर्ष उन खेतोमें तो दूर ही कर सकता है । परन्तु जो सर्वज्ञ हो, सर्वप्रायः कुछ भी पैदा नहीं होता जो बारिश पर शक्तिमान हो, संसार भरका प्रबंध करनेवाला ही निर्भर हैं, हाँ, नहरसे पानी आनेवाले खेतोंमें हो और एक छोटेसे परमाणुसे लेकर धरती उन्हीं दिनों सब कुछ पैदा हो जाता है। इससे आकाश तककी गति-स्थितिका कारण हो, उसके यह बात प्रत्यक्ष सिद्ध है कि संसारका कोई सम्बंधमें यह बात कभी भी नहीं कही जा एक प्रबंधकर्ता नहीं है, बल्कि वस्तुस्वभावके सकती कि, वह ऐसा प्रबंध नहीं कर सकता, कारण ही जब बारिश बरसनेका सामान बँध जिससे कोई भी उसकी आज्ञाको भंग न कर जाता है तब पानी बरस जाता है और जब सके और सारा कार्य उसकी मर्जी के मुताबिक वैसा सामान नहीं बँधता तब वह नहीं बरसता। (इच्छानुसार ) ही होता रहे । एक ओर तो वर्षाको इस बातकी कुछ भी परवाह नहीं है कि संसारके एक एक कण ( अणु ) का उसे प्रबंधउसके कारण कोई खेती हरी होगी या सूखेगी कर्ता बताना और दूसरी ओर अपराधोंके रोकऔर संसारके जीवोंको नफा पहुँचेगा या नुक- नेमें उसे असमर्थ ठहराना, यह तो वास्तवमें उस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522881
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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