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________________ अङ्क ७-८ धर्म और समाज। २३९ . है तो क्या उसे यह उपदेश करना ठीक होगा साँस भी नहीं लेने देती, उनकी दृष्टिमें जरा भी कि वह अग्निसे कभी कोई काम न ले या कि नहीं खटकती । क्या इसीलिए कि यह फाँसी उसे अग्निसे काम लेनेकी तरकीब सिखाना ठीक हमने अपने आप लगाई है, इसकी मौत होगा । इसका उत्तर प्रत्येक बुद्धिमान मनुष्य मीठी है ? यही देगा कि दूसरी बात ही होनी चाहिए। हमारा वक्तव्य केवल यह है कि यदि धर्म __ यद्यपि आधुनिक शिक्षा और समयके प्रभा- हमारे स्वभाव या कर्त्तव्यका बोधक है, जैसा कि वसे आजकल धार्मिक क्षेत्रमें भी असन्तोष हम अपना अभिप्राय प्रकट कर चुके हैं, तब तो और हलचल मची हुई है और प्रत्येक धर्मके वह हमसे और हम उससे किसी दशामें भी पृथक् अग्रणी और शिक्षित पुरुष यह अनुभव करने नहीं हो सकते । क्योंकि प्रत्येक पदार्थकी लगे हैं कि अब इस बीसवीं शताब्दीकी जन- सत्ता उसके धर्म पर ही अवलम्बित होती है ताको इस प्रकाशके युगमें केवल धर्मके नामसे और ऐसे धर्मकी आवश्यकता न केवल समाजको रूढिका दास नहीं बनाया जा सकता और न है किन्तु प्रत्येक व्यक्तिको है। जहाँ राष्ट्र या इस बढ़ते हुए हेतुवादके प्रवाहको ही रोका जा समाज अपने उस स्वाभाविक धर्मका पालन करें, सकता है । तथापि वे: __वहाँ कोई व्यक्ति भी उसकी उपेक्षा न करे । इस न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसंगिनाम्। दशामें धर्मकी व्यापकता या अबाधसत्ता किसीइस नीतिका अनुसरण करते हुए धर्मके विष- को अवाञ्छनीय नहीं हो सकती और यदि यह यमें स्पष्टवादितासे काम नहीं ले सकते । इतना हमारा भ्रम है और वास्तवमें धर्मका अभिधेय ही नहीं बहुतसे शिक्षित ऐसे भी मिलेंगे जो जैसा कि आजकल माना जा रहा है, मतमअपने समाजको प्रसन्न करनेके लिए या उसका तान्तरके काल्पनिक सिद्धान्त और भ्रमात्मक विश्वास-भाजन बननेके लिए उसके भ्रमात्मक विश्वास हैं, तो हम निःसंकोच अपने देशवाविश्वासों पर तर्क और विज्ञानकी कलई चढ़ाने सियोंसे यह प्रार्थना करेंगे कि जिस प्रकार लगते हैं। जिस देशमें नैतिक बलकी यह दुर्दशा पश्चिमवासियोंने धर्मकी सीमा नियत करके हो और जहाँ मानके भूखे शिक्षित लोग अशि- अपने सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और क्षितोंसे मानभिक्षाकी याचना करें, वहाँ यदि औद्योगिक क्षेत्रोंसे उसका प्रतिबन्ध हटा दिया धर्मका ऐसा दुरुपयोग हो रहा है तो इसमें है, ऐसा ही हमको भी करना चाहिए अन्यथा आश्चर्य ही क्या है ? परन्तु प्रश्न यह है, कि जब ये भ्रमात्मक विश्वास अपने साथ हमको भी तक धर्मके सूर्यमें अन्धविश्वासका यह ग्रहण ले डूबेंगे। लगा हुआ है क्या हम अपने उद्देश्य और लक्ष्य- आप डुबन्ते बामना ले डूबे जजमान। को प्राप्त कर सकते हैं ? हमारे देशके नेता -स्पष्टवादी। राजनैतिक स्वतंत्रताके लिए तो फड़फड़ा रहे हैं, पर यह धार्मिक परतन्त्रता जो हमें खुली हवामें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522881
Book TitleJain Hiteshi 1920 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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