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________________ १४२ जैनहितैषी [भाग १४ २ ईश्वरके विषयमें बोलशे- अधिकारी कुटुम्बका मुखिया या राजा हुकूमत विकोंकी राय। करता था वह सबसे अधिक बुद्धिमान, बलवान् और धनवान होता था, इस लिए ईश्वर समाचारपत्रोंके पाठक रूसकी जारशाही भी सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और लक्ष्मीपति माना सत्ताको उलट-पलट देनेवाले बोलशेविकोंको गया। कमसे कम रूसी भाषामें तो ईश्वर जानते होंगे। इस समय संसारके साम्यवादि- (Bog) शब्दकी उत्पत्ति उसी मूलसे हुई है योंमें यही अग्रगण्य हैं । ऊँच नीच, धनी जिससे धनिक ( Bogate ) की। ईश्वर में विश्वास निर्धनी. राजा प्रजा, आदिकी सामाजिक करना गलामी में विश्वास करना है। ईश्वरकी विषमताओंको मिटादेनेवाले इनके सिद्धान्त स्तुति 'प्रभु' कहकर की जाती है। प्रभु किसे जगत्प्रसिद्ध हो चुके हैं, परन्तु इनके धार्मिक कहते हैं ? जो स्वामी है और गुलाम नहीं । विचारोंसे बहुत ही कम लोग परिचित हैं । हम निस्सन्देह हम ईश्वरप्रार्थनामें कहते भी हैं कि यहाँपर उनके केवल ईश्वरसम्बन्धी विचा- 'हे ईश्वर हम तेरे दास हैं।' इसके अतिरिक्त रोको उद्धत करते हैं, जो एक प्रसिद्ध बोल्शे- सर्वजित, अखिलेश, इत्यादि विशेषण भी इसी विकके लिखे हुए हैं। वह कहता है-" मनुष्य बातके द्योतक हैं कि सबल विजयी धनियोंकी जिन बातोंको बिलकुल नहीं जानता उनके प्रभुतासे ही ईश्वरकी प्रभुताकी कल्पना उत्पन्न जाननेका प्रयत्न अपनी खूब जानी हुई बातों- हुई है ।" बोल्शेविकोंके इन विचारोंसे मालूम से ही करता है । कूपमण्डूककी तरह वह समुद्र- होता है कि वे ईश्वरको नहीं मानते और की विशालताका माप कुएँके व्याससे ही करता ईश्वरको साम्यवादके सिद्धान्तोंका घातक है। मनुष्य समझता है कि अन्य चीजें भी समझते हैं। वैसी ही होंगी जैसी कि वे चीजें जिन्हें वह हमारा अनुमान है कि भारतके जैन बौद्ध रात दिन देखता सुनता रहता है । कहते हैं आदि धर्म भी यहाँके प्राचीन साम्यवादी हैं; कि एक लड़कीका पालनपोषण एक ऐसे स्थानपर उन्होंने भी पर्ण साम्य स्थापित करनेके लिए हुआ था जहाँ मुर्गियोंका व्यवसाय होता था। सष्टिकी रचना. रक्षा और प्रलय करनेवाले वहाँ उसे रातदिन अंडोसे ही कान पड़ता था। किसी ईश्वरके अस्तित्वको स्वीकार नहीं किया अतः अंडे सदैव उसकी आँखोंके सामने है। जिस तरह उन्होंने सामाजिक विषमताज.नाचा करते थे । एक बार जब उसने तारोंसे नित अत्याचारोंको दूर करने के लिए ऊँच-नीच भरा हुआ आकाश देखा तब वह कहने लगी द्विज-शूद्र आदि भेदोंका विरोध किया थाकि समस्त आसमानमें अंडे फैल हुए हैं। इसी ब्राह्मणोंकी प्रबल सत्ताको क्षीण किया था, प्रकार जब मनुष्योंने देखा कि संसारमें कुछ उसी तरह धार्मिक गुलामीसे मुक्त करनेके लिए मनष्योंका काम भाज्ञा देना है और कुछका अनीश्वरवादका भी प्रचार किया था । कछ आज्ञा पालन करना, तब उन्होंने सोचा कि ऐसे भी प्रमाण मिले हैं जिससे मालूम होता कदाचित् समस्त संसारका संगठन भी इसी प्रकार है कि इन धर्मोंने उस समय राजाओं या शासहुआ है। कोई शक्ति ऐसी भी अवश्य होगी जो कोंके अनियंत्रित शासनको नष्ट करनेका भी सारे संसार पर हुकूमत करती है । इसी शक्तिकी प्रयत्न किया था और इसके लिए उस समय कई कल्पनासे ईश्वरकी उन्नति हुई । संसारमें जो प्रजातंत्र स्थापित हुए थे जिन्हें कि 'गणतंत्र'
SR No.522877
Book TitleJain Hiteshi 1920 01 02 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1920
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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