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गन्धहस्ति महाभाष्य की खोज ।
अङ्क ४ ]
करें और उसके बाद हमें अपने विचारोंसे सुचित करके कृतार्थ बनाएँ । यदि हमारा कोई अनुसंधान अथवा विचार उन्हें ठीक प्रतीत न हो तो हमें युक्तिपूर्वक उससे सूचित किया जाय । साथ ही, जिन विद्वानोंको किसी प्राचीन साहित्यसे गंधहस्तिमहाभाष्यके नामादिक चारों बातों में से किसी भी बातकी कुछ उपलब्धि हुई हो, वे हम पर उसके प्रकट करनेकी उदारता दिखलाएँ, जिससे हम अपने विचारोंमें यथोचित फेरफार करनेके लिये समर्थ हो सकें, अथवा उसकी सहायता से किसी दूसरे नवीन अनुसंधानको प्रस्तुत कर सकें । आशा है, जैनहितैषी के विज्ञ पाठक हमारे इस समुचित निवेदन पर ध्यान देनेकी अवश्य कृपा करेंगे, और इस तरह एक ऐतिहासिक तत्त्वके निर्णय करनेमें सहोयो गिताका परिचय देंगे।
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भी अनुपलब्ध ग्रंथों में था जिसका नाम सुनकर ही उन्होंने उसे अपनी सूची में दाखिल किया था । उसके सम्बंध में यह कहीं प्रकट नहीं किया गया कि वह अमुक लायब्रेरी में मौजूद है । पंडितजीने इस सूची में गंधहस्तिमहाभाष्यका नाम देख कर ही, बिना कुछ सोचे समझे, आस्ट्रिया देशके एक नगरकी लायब्रेरीमें उसके अस्तित्वका निश्चय कर दिया और उसे सर्व साधारण पर प्रकट कर दिया ! यह कितनी भूलकी बात है ! हमें अपने पंडितजीकी इस कार्रवाई पर बहुत खेद होता है जिसके कारण समाजको व्यर्थ ही एक प्रकारके चक्कर में पड़ने और चंदा एकत्र करने कराने आदिका कष्ट उठाना पड़ा । आशा है पंडितजी, जिनका नाम यहाँ देने की हम कोई जरूरत नहीं समझते, आगामी से ऐसी मौटी भूल न करनेका ध्यान रक्खेंगे ।
सरसावा, ता० १९-१-२०
अन्तमें हम अपने पाठकों पर इतना और प्रकट किये देते हैं कि इस लेखका कुछ भाग लिखे जाने के बाद हमें अपने मित्र श्रीयुत मुनि जिनविजयजी आदि के द्वारा यह मालुम करके बहुत अफसोस हुआ कि दक्कन कालिज पूना लायब्रेरीकी किसी सूचीके आधार पर एक पंडित महाशयने, समाज के पत्रोंमें, जो इस प्रकारका समाचार प्रकाशित कराया था कि, गंधहस्ति महाभाष्य आस्ट्रिया देशके अमुक नगरकी लायब्रेरी में मौजूद है और इसलिये वहाँ जाकर उसकी कापी लानेके लिये कुछ विद्वानोंकी योजना होनी चाहिये, वह बिलकुल उनका भ्रम और बेसमझीका परिणाम था। उन्हें सूची देखना ही नहीं आया । सूचीमें, जो किसी रिपो के अन्तर्गत है, आस्ट्रिया के विद्वान डाक्टर बूल्हरने कुछ ऐसे प्रसिद्ध जैनग्रंथोंके नाम उनके कतीओंके नाम सहित प्रकट किये थे जो उपलब्ध हैं, तथा जो उपलब्ध नहीं हैं किन्तु उनके नाम सुने जाते हैं । समंतभद्रका ' गंधहस्तिमहाभाष्य..
किसी नियम या सिद्धान्त के तौर पर विधवाविवाह कोई अच्छी चीज़ नहीं है । और न यह बात पसंद किये जाने के योग्य है कि उसे ख्वामख्वाह उत्तेजन दिया जाय । बन सके तो खुशी से पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन होना चाहिये परंतु जो लोग ( स्त्री या पुरुष ) पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन करनेके लिये असमर्थ हैं, गुप्त व्यभिचार करते हैं और इस तरह भ्रूणहत्या, बालहत्यादि अनेक दुष्कर्मों तथा पापोंको जन्म देते हैं उन - की अपेक्षा वे लोग अच्छे जरूर हैं जो इन पापों से बचने के लिये पुनर्विवाह करके बैठ जाते हैं और सुखपूर्वक अपनी गृहस्थी चलाते हैं । ऐसे लोगोंकी इस प्रवृत्ति में व्यर्थकी रुकावटें पैदा करना भी अच्छा नहीं है ।
—खंडविचार |