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अङ्क १२ ]
प्रस्थापित साम्राज्य में यह भ्रम बहुत दिनोंतक नहीं टिक सकेगा ।
हमारे बहुतसे पुराणप्रिय पण्डितवर्य्य और धर्ममूर्ति पत्रसम्पादकगण कहा तो करते हैं कि हमारे पास आधुनिक भूगोलसिद्धान्तोंके खण्डनार्थ और जैनभूगोलके मण्डनार्थ अनेकानेक अकाट्य युक्तियाँ मौजूद है; परंतु उन्हें प्रकट आजतक किसीने नहीं किया । हमारी उन महाशयोंसे सविनय प्रार्थना है कि वे अब कृपाकर अपनी उन युक्तियोंके भाण्डागारको जैनत्व और जनता के हितार्थ उदार भावसे खोल दें । पर युक्तियों के नामसे अपने ऊटपटाँग विचारोंको प्रकट करनेकी कृपा न करें । उन्हें शास्त्रीय प्रमाणोंके साथ वर्तमानिक परिस्थितिकी सब ही अवस्थाओंका यथायोग्य विचार करना चाहिए । यह विषय उपेक्षा करने के लायक नहीं है। जैनधर्मकी प्रमाणिकताका इसके ऊपर बड़ा भारी आधार रहा हुआ है । इस एक अवयव निर्मूल सिद्ध होनेसे सारा ही विद्यमान जैनसाहित्य भयंकर स्थितिमें जा पड़ता है । उसकी ऐसी विचित्र रचना है कि उसमेंका एक भी विचार निकाल देने से समग्र शृंखला टूट जाती है। जैनतत्त्वज्ञानका एक दूसरे विचारके साथ 'व्याप्तिज्ञान ' के समान अविनाभावि सम्बन्ध है । इसकी जो विशेषता है वह यही है और यही विशेषता आजतक इसे जीवित रख रही है।
पुस्तक- परिचय |
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विषयमें हम अपनी विस्तृत सम्मति देना चाहते थे; परन्तु समय अभावसे ऐसा नहीं किया जा सका। इसके लिए हम लेखक और प्रकाशक महाशयोंसे क्षमा चाहते हैं ।
पुस्तक- परिचय |
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इस अंकमें अब तककी समालोचनार्थ आई हुईं तमाम पुस्तकका संक्षिप्त परिचय दे दिया जाता है। इनमें से बहुतसी पुस्तकें ऐसी हैं, जो हमारे पास वर्षो से रक्खी हुई हैं और जिनके
१. मोहिनी अर्थात् बिगड़ेका सुधार और पतितका उद्धार | श्रीयुत दत्तात्रय भीमाजी रण दिवेके लिखे हुए ' रूपसुन्दरी' नामक मराठी उपन्यासके गुजराती अनुवादका हिन्दी अनुवाद | अनुवादक बाबू भैयालाल जैन । आकार डबल क्राउन १६ पेजी । पृष्ठसंख्या ९० । मूल्य आठ आने ।
२ सच्चा विश्वास । ( त्रिलोकमोहिनी मालाका चौथा पुष्प | ) बंगालके सुप्रसिद्ध महा-त्मा केशवचन्द्रसेन के एक छोटेसे लेखका अनुवाद | अनुवादक बाबू श्यामसुन्दरलाल गुप्त । आकार डबल क्राऊन ३२ पेजी । पृष्ठ संख्या ४८ । मूल्य दो आने ।
३ बालिका विनय । ( त्रिलोकमोहिनी मालाका तीसरा पुष्प | ) सम्पादिका एक जै महिला । आकार, पृष्ठसंख्या और मूल्य पूर्वपुस्तक के समान ।
४ रत्नकरण्ड श्रावकाचार, Or the House halder's Dharma 1 समन्तभद्रस्वामीकृत रत्नकरण्डका अगरेजी अनुवाद, लगभग ४२ पेजके इन्ट्रोडक्शनके सहित। अनुवादक, बाबू चम्पतरायजी बैरिष्टर एट. ला. हरदोई । डबल क्राऊन सोलह पेजी आकारके १२० पृष्ठ | मूल्य बारह आने ।
इन चारों पुस्तककोंके प्रकाशक श्रीयुत कुमारदेवेन्द्रप्रसाद जैन, आरा हैं । इनकी छपाई, सफाई आदि सभी बातें दर्शनीय हैं ।
५ The Study of Jainism. श्वेताम्बरचार्य आत्मानन्दजीके 'जैनतत्त्वादर्श' कर