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जैनहितैषी
[भाग १३ काल-भावके अनुसार काम करनेवाले हों, किन्तु सेवाके बीसों काम हो रहे हैं और इस समय तो अपने मूल सिद्धान्तसे जरा भी न हटनेवाले हों, इसके नेता भारतको स्वराज्य प्राप्त करानेके अहिंसा धर्म जिनकी जिह्वा पर ही न हो किन्तु बड़ेसे बड़े पुण्य कार्यके अनुष्ठानमें लगे हुए हैं। उनके हर एक कार्यसे टपकता हो, जिनके ऐसे कार्योंका जनता पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। दयासमुद्र में किसी एक खास जाति, देश या यही कारण है जो इस सम्प्रदायकी उन्नति होती धर्मके ही मनुष्य नहीं, किन्तु समस्त संसारके जाती है और सैकड़ों विद्वान् इस सम्प्रदायके केवल मनुष्य ही नहीं वरन् जीवमात्र गोता लगा अनुयायी होते जाते हैं। सकते हों, उन्हीं कर्मवीरोंकी हमें जरूरत है।
जैनसमाजकी उन्नतिके लिए भी ऐसे ही
मकर . जिस समाजमें और धर्ममें ऐसे कमेवार हात कर्मवीरोकी आवश्यकता है। जैनाचार्योने चार हैं, वह समाज और वह धर्म दिन पर दिन
प्रकारका दान करना गृहस्थोंका नित्य कर्म बतउनति करता है; कार्य करनेवाले और सहायता
लाया है-भोजनदान, ज्ञानदान, औषधदान देनेवाले उसे स्वयं ही मिल जाते हैं, उसमें आक
और अभयदान । संसारमें जितने परोपकारके र्षण शक्ति बढ़ जाती है और उसके समीप बला
कार्य हैं, वे सभी इनमें गर्भित हो जाते हैं। ढ्यसे बलाढ्य आत्मायें खिंची हुई चली आती हैं।
कर्मवीर इन्हीं कामोंको करेंगे । वे भूखोंको जब जब किसी धर्मने उन्नति की है, तब
भोजन देंगे, अकाल पीड़ितोंकी सहायता करेंगे, तब उसमें कर्मवीर मनुष्योंने जन्म लिया है। दो
अनाथोंका पालनपोषण करेंगे, विद्यालय, पुस्तहजार वर्ष पहले बौद्ध धर्म सारे भारतमें अग्निकी
कालय, स्कूल, कालेज खोलेंगे, छात्रवृत्तियाँ तरह फैल गया था। इसका कारण क्या था? यही कि उसमें ऐसे सैकड़ों स्वार्थत्यागी और
देकर ज्ञानलाभ करनेका मार्ग सुगम कर देंगे,
औषधालय खोलेंगे, दवाइयाँ मुफ्त बाँटेंगे, रोगिकर्मवीर भिक्षुक हो गये थे जिनका काम था
योंकी परिचर्या करेंगे और उनका इलाज जनताको लाभ पहुँचना, दुखियोंका दुःख दूर -
. करायँगे, दुखियोंके दुःख दूर करेंगे, कोई किसीको करना, रोगियोंकी सेवा करना और उनकी
सता रहा हो तो उसकी रक्षा करेंगे, किसी दवा-दारू करना, बुरा कहनेवालों और मारने
देशकी प्रजा पर कोई आपत्ति आई होगी तो वालोंपर भी प्यार करना, और ब्राह्मण हो ।
उसे हटावेंगे, और उसके स्वत्वोंकी रक्षाके लिए चाहे मेहतर, सबके साथ एकसा वर्ताव करना। इत्यादि । ईसाई धर्म भी ऐसे ही कर्मवीरों घोर आन्दोलन करेंगे। द्वारा फैला। उनमें सैकड़ों वीर ऐसे हो गये, जो जैनसमाजमें जब ऐसे कर्मवीर हो जायेंगे अपने सिद्धान्तोंके ऊपर जीवित जला दिये गये, और वे अपना कार्य शुरू कर देंगे, तब उन्हें पर उन्होंने कायरता धारण नहीं की। फल यह सहायता करनेवालोंकी कमी न रहेगी । जो हुआ कि सारा यूरोप ईसाईधर्मका अनुयायी बी. ए. एम्. ए. आदि समाजकी भलाईके लिए हो गया । हालके थियासोफी सम्प्रदायकी कोई काम नहीं करते हैं उन पर भी इनका ओर ही देखिए । इसके.कर्मवीर कितना काम प्रभाव पड़ेगा और वे बड़ी प्रसन्नतासे सेवा. कर रहे हैं। यद्यपि इनकी संख्या इस देशमें कार्योंमें लग जायँगे । केवल इतना ही नहीं, बहुत थोड़ी है, तो भी इनके द्वारा अनेक हाई- सैकड़ों उत्साही अजैन सज्जन भी इनके आत्म. स्कूल और कालेज आदि चल रहे हैं, देश- बलसे आकर्षित होकर काम करने लगेंगे । इस
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