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________________ अङ्क ९-१० ] विविध प्रसङ्ग। ४६१ ___ ऐसी दशा में हमें केवल शास्त्र या आगमका और ३१ (?) नवंबरतक सभापति श्री आत्मानाम सुनते ही हथियार न फेंक देना चाहिए । नन्द जैन ट्रैक्ट सोसायटी अम्बाला शहरको यदि ऐसा करोगे तो याद रक्खो, मिथ्यात्वकी भेजना चाहिए । सर्वोत्तम लेखको छपवाने और चुंगलमें फँसे विना न रहोगे । तुम अपनेको स्वाधीन रखनेका सर्व हक सोसायटीको होगा।' समझते भले ही सम्यग्दृष्टियोंके शिरोमणि रहो, इस नोटिसको पढ़कर शायद कुछ भोले भाईयोंने पर वास्तवमें घोर मिथ्यादृष्टि हो जाओगे । यह समझा हो कि उक्त सोसायटीने विद्वानोंकी जिसने विवेकबुद्धिको आलेमें रख दिया है, खरे कदर करना प्रारंभ किया है और वह जरूर और खोटेकी पहिचान भुला दी है और जो उत्तमोत्तम लेखकोंद्वारा अच्छे अच्छे निबन्ध जड वाक्योंका गुलाम बन गया है वही यदि तय्यार कराकर उन्हें प्रकाशित करनेमें शीघ्र सम्यग्दृष्टि है, तो फिर सम्यग्दृष्टित्वकी महिमा समर्थ होगी । परन्तु यह निरी भूल और कोरा ही क्या रही ? ऐसा सम्यग्दर्शन क्या कोई बड़ा ख्वाब खयाल है । सोसायटीके इस आचरणसे मारी प्रार्थनीय गुण हो सकता है ! शास्त्रोंको उससे ऐसी आशा रखना बिलकुल फिजूल मानो, मस्तक पर चढ़ाओ, पूजो, इसके बिना और निर्मूल है। उसके इस आचरणको कदर आत्मकल्याण नहीं हो सकता, सम्यग्दर्शनकी नहीं, विद्या और विद्वानोंका, एक प्रकारसे प्राप्तिके लिए ये बहुत ही अच्छे साधन हैं; परन्तु अपमान कहना चाहिए । परन्तु अपमान हो या यह ध्यानमें रक्हो कि कागज या ताडपत्र पर सम्मान, इसमें संदेह नहीं कि, सोसायटीने यह लिखा हुआ सब ही कुछ शास्त्र नहीं है । भगवान् नोटिस निकालकर अपनी योग्यताका खासा समन्तभद्रने शास्त्रका लक्षण यह किया है:- परिचय दिया है । उसकी दृष्टि कितनी आप्तोपज्ञमनुल्लन्यमदृष्टेष्टविरोधकम्। संकीर्ण और कितनी अनुभवशन्य है, इसका तत्त्वोपदेशकृत् सार्व शास्त्रं कापथघट्टनम् ॥ पता भी इस नोटिससे भले प्रकार लग जाता है । जान पड़ता है कि, सोसायटीको अभीतक विविध प्रसंग। यह भी मालूम नहीं कि ' रहस्य ' कहते किसे हैं; और वह कितने गहरे अध्ययन, मनन, अनु- : भव और परिश्रमसे सम्बन्ध रखता है । शायद १ विद्वानोंकी कदर। उसने कहींसे रहस्यका सिर्फ नाम सुन लिया 'दिगम्बर जैन' के गांक नं० ११ में, है और इस लिए वह उसे बच्चोंका एक खेल 'श्रीआत्मानंद जैन ट्रैक्ट सोसायटी अम्बाला' समझती है। तभी उसने किसी विद्वानसे विनय, की ओरसे, एक नोटिस प्रकाशित हुआ है, अनुनय, और प्रार्थना आदि करनेकी जरूरत जिसका शीर्षक है विद्वानोंको इनामकी सूचना' न समझकर, उत्तमसे उत्तम निबंधके लिए एकऔर वह नोटिस इस प्रकार है- दम दस रुपयेकी भारी रकमका इनाम निकाल __'जो सज्जन " जैनसंध्या (प्रतिक्रमण ) का दिया है ! हमारी समझमें यदि सोसायटी रहस्य" इस विषय पर हिन्दी भाषामें लेख मूल्य देकर पाँचसौ रुपयेमें भी ऐसा एक सांगोलिखकर भेजेंगे. उनमेंसे जिसका लेख उत्तम पांग रहस्य तय्यार करा सके, जिसे वास्तवमें होगा उसको यह सोसायटी १०) इनाम देगी। जैनसंध्यावंदनका रहस्य कहना चाहिए, तो लेख फुल्सकेप कागजके २० पृष्ठसे कम न हो उसे अपनेको भाग्यशालिनी समझना चाहिए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522836
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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