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________________ ४४२ जैनहितैषी [ भाग १३ जैनीलोग तो केवल साढ़े बारह लाख ही रह लगता है के बिजनौर जिलेमें जैनियोंकी ओरसे गये हैं ! बिजनौरके जैनियोंकी जो गणना सन् १९११ __ हे जैनधर्मावलिम्बयो, यदि तुम जैनधर्मको के लगभग की गई था वह १९११ ई० की भारत-वर्षमें स्थित रखना चाहते हो, तो मोह- सरकारी रिपोर्टमें दी हुई गणनासे मिलती है। निद्रा छोडो और उन कीड़ोंको पहचानो जिन्होंने इस लेखके साथमें चार कोष्टक प्रकाशित जैनजातिके मलमें लगकर उसे खोखला किये जाते हैं। उनमेंसे पहले कोष्टकमें यक्तकर डाला है । यह जैनधर्म और जैनजातिके प्रान्तके प्रत्येक जिलेकी जैन जनसंख्या दी • जीवन भरणका प्रश्न है । इसको अच्छी तरह हुई है, जिससे यह ज्ञान हो जायगा कि किस मनन कर निर्णय करो और इसके मूलमें लगे किस जिले में १८९१ ई० से १९११ ई० तक के • हुए कीड़ोंको पहचानकर दूर कर दो। तुम्हारा दस वर्षामं और १९०१ ई० से १९११ ई० के सम्यक्त्वका स्थितिकरण अंग कहाँ गया जो तुम तकके दस वर्षों में कितनी घटोतरी या बदोतरी अपने भाइयोंका नाश होते हुए देखते हो और हुई हे । सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़, उनके बचानेका कोई प्रयत्न नहीं करते । यदि मथुरा, आगरा, फर्रुखाबाद, मैनपरी, एटा, कानआपके हृदयमें धर्मका कुछ भी अंश शेष है तो पुर और इलाहाबादके जिलों पर अधिक ध्यान कटिबद्ध होकर खड़े हो जाओ और जैन- देनेकी आवश्यकता है। * जातिके क्षयको रोको। ___ दूसरे कोष्टकमें मुख्य मुख्य नगरोंकी जैन - यद्यपि भारतवर्ष एक बहुत ही बड़ा देश है, और हिन्दू जनसंख्या सन् १९०१ और उसमें बहतसे प्रान्त हैं और भिन्न भिन्न प्रान्तोंके सन् १९११ की दी हुई है। इससे ज्ञात हो रीति-रिवाजामें कुछ अन्तर भी है, तो भी जायगा कि सन् १९०१ ई० से १९११ ई० वेरीतिरिवाज जिनसे जैनधर्मानुयायियोंकी तकके दस वर्षों में किस किस नगरमें जैनसंसंख्या दिनपर दिन ह्रास होरहा है, साधारणतः ख्याकी कितनी घटोतरी या बढ़ोतरी हुई है और एकसे हैं । यह हो सकता है कि एक प्रान्तमें साथमें यह भी मालूम हो जावेगा कि उन नग क कारणसे जैनियोंकी संख्या अधिक हानि रोंमें उन्हीं दस वर्षों में कितने हिन्दू भाई घटे हैं हुई हो और दूसरे प्रांतमें किसी दूसरे ही कारणसे या बढ़े हैं। होस लेखमें जैनियोंका नाश और उसके अलीगढ़, आगरा, फिरोजाबाद, कोसी, एटा. iण बतलानेके लिए युक्तप्रान्तके जैनियांकी कानपुर, इलाहाबाद और रामपुर रियासतकी या दी गई है । जो कारण जैन जातियोंके जनसंख्याओं पर अधिक ध्यान देना चाहिए । नाशके युक्तप्रान्तमें हैं, लगभग वे ही कारण - * सन् १८९१ ई० की सरकारी रिपोर्ट के अन्दर बहत अन्य प्रान्तों पर भी लागू होते हैं। . त्रुटियाँ रहगई थीं । एक तो बहुतस जैनी जैनियोंमें गिने जो मनुष्य-संख्या इस लेख में दी है वह मनुष्य जानेस रह गये थे, इसलिए कई स्थानोंपर जैनी १८९१ गणनाकी सरकारी रिपोर्टसे है और वह दिग से १९०१ ई. तकके दस वर्षोंमें बढ़े मालूम होते हैं, स्बर दूसरे युक्तप्रान्त के हिन्दू और मुसलमानोंकी संख्या गों की संख्यासे भी मिलती है । सरकारी रिपोर्ट में १८९१ से १९०१ ई० के अन्दर दस वर्षोंमें बहुत जो जैनियोंकी संख्या दी गई है, वह करीब बढ़ी थी, इसलिए उक्त दस वर्षों में जैन जनसंख्या करीब ठीक है। उसकी सत्यताका पता इससे भी भी बढ़नी चाहिए थी, वह बढ़ी न थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522836
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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