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________________ ४०४ जैनहितैषी [ माग १३ सामनेवाली गलीमें है। खुले आम, बीच सड़कमें पहुँच गये । एक तुच्छ बात पर मतभेद होनेसे लोग इन अनाथा लड़कियोंसे हँसी मजाक करते उस आभमानिनी वेश्याने डिप्टी साहब पर हैं । उस झुण्ड या कतारमेंसे जिसकी तरफ गुस्सेसे हाथ चला दिया। डिप्टी साहब अपने इशारा हो जाता है उसे पुरुषके साथ अपने मुँहसे कहते थे कि दोनों मित्र यदि जूता हाथमें स्थानको प्रस्थान करना पड़ता है-क्या अनोखी ले दौड़ कर भाग न जाते, तो खूब ही पिटते, सभ्यता है ! और पलिसके हवाले कर दिये जाते ऊपरसे! लोअर चीतपुर रोडके पीछे कोई महल्ला। वे कहने लगे-" इस दुर्घटनासे मेरे मित्र, इस महल्लेका नाम स्मरण नहीं आता। यहाँकी जिनका मैं मेहमान था बहुत दुःखी हुए। अपनी दुर्दशा देख कर कलेजा फट जाता है, खून पानी और मेरी झेप मिटानेके लिए मुझसे कुछ न कह • हो जाता है । कई सौ घर बंगाली वेश्याओंके कर वे मुझे एक मनोहर बेल, लता और पुष्पोंसे -- हैं। गलियोंसे भीतरका कोई कोई हिस्सा दिखाई सुशोभित सुन्दर बंगलेमें ले गये । यह सुनकर देता है । आनन्दपूर्वक निडर होकर लोग तख्तों- कि यह एक वेश्याका बंगला है, मैं धक्कसे रह पर मसनद लगाये ताश खेल रहे हैं और लज्जा गया। डरा कि कदाचित् यहाँ भी न ठुक जायँ, त्याग कर खुलेआम हर तरहका मजाक कर रहे पर यहाँका बर्ताव देशी वेश्याओंसे भी अच्छा हैं। सबसे घृणित बात यह है कि, इन वेश्याओंमें ठहरा ! यह एक यहूदिन वेश्याका बंगला था । बहुतोंकी आयु १० वर्षसे अधिक न होगी। पर ऐसे बहुत से बंगले कलकत्तमें हैं । मैं १५ दिन हाय पेट, और दरिद्रता और उन्हें गहरी कन्द- तक कलकत्तेमें रहा और अकसर शामको किसी रामें गिरानेवाले पुरुषोंकी सभ्यता! हम, तुम ऐसे ही बंगलेमें आनन्दपूर्वक समय व्यतीत करता तीनोंको नमस्कार करते हैं। रहा। "-गिनते जाइए, यह सभ्यताका सोना गाछी। ____ नमूना है! यहाँ भी वही हृदयविदारक दृश्य है । रास्ता एडेन गार्डन। चलना मुश्किल है । कामकाजी लोग इस रास्तेसे मैं-( चौंक कर ) क्यों जी, यह अनोखी होकर नहीं जाते, रास्ता बचा कर किसी दूसरी विक्टोरिया सब्जा पेयर तो मोती बाबूकी है न ? तरफसे निकल जाते हैं । यहाँ वेश्यायें राह चलते मेरे मित्र--( मुसकराकर ) खूब, गाड़ी और हाथ पकड़ लेती हैं । टोपी या डुपट्टा ले भागती हैं। जोड़ी तो पहचान गये, पर उसके मालिक सवारों समाजसे गिरी हुई लड़कियोंकी अत्यन्त दीनदशा, पर आँख नहीं ठहरती। बेहयाईकी आखिरी हद्द, और भारतकी सभ्यताकी मैं-अरे ! यह तो स्वयं मोती बाबू हैं, पर तीसरी झलक, यहाँ दीखती है। उनके बगलमें यह कौन है ? ___ इनके अतिरिक्त एक महल्ला गोरी (यूरोपियन) मेरे मित्र-उन्हींकी घरवाली। वेश्याओंसे भरा है। यहाँ अँगेरज तो बिरले ही मैं-अजी जाओ भी, क्या मैंने उनकी देख पड़ते हैं, हाँ मन चले भारतवासी ठोकरें बीबीको नहीं देखा है ! यह तो रंग ढंगसे कोई खानेके लिए अवश्य आया करते हैं । एक नव- वेश्या मालूम पड़ती है; लेकिन...। युवक अग्रवाल ग्रेजुएट डिप्टी कलेक्टर (शायद मित्र-वेश्या बीबी नहीं तो और क्या है ? हमीं लोगोंकी तरह जाँच करते हुए !) एक लेकिनके बाद चुप क्यों हो गये ! तुम्हें आश्चर्य मित्रके साथ इन्हीं गोरी वेश्याओं से एकके यहाँ है कि मोती बाबू गौहरजानके साथ बैठ कर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522836
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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