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________________ जैनहितैषी [ भाग १३ लिखनेकी कृपा नहीं की कि इस नाटकका अवतरित हुए । गर्भावस्थामें माताको कष्ट न होनेके मूल आधार बंकिम बाबूका राजसिंह है । लिए भगवानने जो विचारादि किये थे और तदनुनाटकके लगभग ५० पृष्ठ हमने पढ़े। उत्तेजना रूप क्रियायें की थीं, उनका भी इसमें उल्लेख नहीं और अन्ध अभिमान बढ़ानेवाले भावोंके सिवाय है। लेखकने इस बातको भी स्पष्ट शब्दोंमें नाटकमें और कोई विशेषता नहीं । स्वाभाविकताका स्वीकार किया है कि ' भगवानके पास चीरमात्र अभाव है । मनोगत भावोंके चित्रण करनेमें भी वस्त्र न था । यह दूसरी बात है कि वे लोगोंको कवि नितान्त असमर्थ है। युवती चश्चलकुमारी ऐसे मालूम होते थे कि वस्त्र पहने हुए हैं। इन वृद्ध राजसिंहके चित्रको देखकर उन पर मुग्ध हो सब बातोंसे मालूम होता है कि लेखक स्वाधीनजाती है और थोड़े ही समयमें वह विरहिणियोंके चेता हैं । पुस्तकका आधेसे अधिक भाग बारह समान 'सर्द आहे' खींचने लगती है, यह बात व्रतोंके, भावनाओंके तथा दूसरे धार्मिक सिद्धान्तोंके किसी रंगमंच पर तो नहीं, रासधारियोंके तमाशोंमें वर्णनमें घिरा हुआ है, जो स्वाध्यायप्रेमियों के अवश्य अच्छी मालूम हो सकती है । मुसलमानोंके कामका है, और इसका कारण यह है कि प्रति नाटककारके हृदयमें जरा भी सहानुभूति नहीं चरित्र ऐतिहासिक नहीं किन्तु धार्मिक दृष्टि से लिखा है और इस कारण वह किसी भी मुसलमान पात्रको गया है और अभीतक लिखे गये हिन्दी महावीरचरिअच्छे रूपमें खड़ा नहीं कर सका है। त्रोंसे बहुत कुछ अच्छा है । जैनोंके तीनों सम्पदा११ श्रीवर्धमानचरित्र । लेखक, जैन मुनि पं. यके लोग इससे लाभ उठा सकते हैं । इसमें ज्ञानचन्द्रजी और प्रकाशक मेहरचन्द लक्ष्मणदास सम्प्रदायभेदकी बातें बहुत ही कम हैं । भूमिसंस्कृत पुस्तकालय,लाहौराआकार क्राउन सोलहपेजी, कासे मालूम हुआ कि लेखक इसको अपूर्ण पृष्ठ संख्या १३६ । कपड़ेकी जिल्द । मूल्य बारह छोडकर ही स्वर्गवास कर गये और इसका शेष भाग आने । चरित्र हिन्दीमें लिखा गया है और निर्णय. उनके गुरु उपाध्याय आत्मारामजीने पूर्ण किया। सागर प्रेसमें सुन्दरताके साथ छपा है । लेखक स्थानकवासी सम्प्रदायके साधु हैं, अतएव उनका १२प्राचीन कीति वा सप्ताश्चये। ले. ५० इसे श्वेताम्बर सूत्रोंके अनुसार लिखना स्वाभाविक शिवनारायण द्विवेदी और प्र०, हरिदास एण्ड है; परन्तु फिर भी इसमें ऐसी बातें नहीं लिखी कम्पनी, कलकत्ता । पृष्ठसंख्या ८० । मूल्य आठ गई हैं जो दूसरे सम्प्रदायके लोगोंको खटकनेवाली आने । इसमें मिसरके पिरामिड, बाबिलनका उद्यान, हैं। लिखते समय उन्होंने संभवता असंभवताका अलम्पसका जुपिटर, डायनाका मन्दिर, मासोलियभी ख्याल रक्खा है। श्वेताम्बरसूत्रोंके अनुसार मकी समाधि, सिकन्दरियाका दीपस्तम्भ, और रोडस महावीर भगवान पहले एक ब्राह्मणीके गर्भ में आये दीपकी अपोलोकी मूर्ति, पृथ्वी के इन सात प्रधान थे और फिर वहांसे एक देवके द्वारा स्थानान्तरित आश्चर्योका और चीनका शीशमहल, चीनकी बडी होकर महाराणी त्रिशलाके गर्भमें पहुँचाये गये थे। दीवार, आगरेका ताजमहल और टेम्स नदीकी गर्भापहरणकी यह बात श्वेताम्बर-स्थानकवासी सुरंग इन चार उपाश्चर्योंका सचित्र वर्णन है। सम्प्रदायोंमें बहुत ही प्रसिद्ध है; परन्तु इस चरि- पृथ्वी में कैसी कैसी विलक्षण चीजें हैं, यह जान. त्रमें इसे असंभव समझकर छोड़ दिया गया है। नेकी इच्छा रखनेवालोंको यह पुस्तक अवश्य पढ़ना यही लिखा गया है कि भगवान् त्रिशलाके गर्भ में चाहिए । वर्णन साधारण है। उसमें कहीं कहीं लेखक आये और ९ मास ७ दिनरात व्यतीत होने पर महाशयने जो अपनी सम्मतियाँ शामिल की हैं उनमें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522834
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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