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भद्रबाहु-संहिता।
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चो यथा, शब्द पाये जाते हैं, जिनसे इस कोशमें 'सामुद्रक ' शब्दके नीचे कुछ श्लोक पिछले कथनकी और भी अधिक पुष्टि होती है। किसी सामुद्रकशास्त्रसे उद्धृत करके रखे गये. इसके सिवाय एक स्थानपर, श्लोक नं० १३६ हैं, जिनमेंके दो श्लोक इसप्रकार हैं:में, ग्राह्यकन्या कैसी होती है, इत्यादि प्रश्न
वामभागे तु नारीणां दक्षिणे पुरुषस्य च । देकर अगले श्लोक नं० १३७ में 'भद्रबाहु
निर्दिष्टं लक्षणं तेषां समुद्रेण यथोदितम् ॥ रुवाचेति ' इस पर भद्रबाहु बोले, इन शब्दोंके
पूर्वमायुः परीक्षेत पश्चाल्लक्षणमेव च । साथ उसका उत्तर दिया गया है। प्रश्नोत्तर रूपके आयुहीन नराणां चेत् लक्षणैः किं प्रयोजनम् ॥ ये दोनों श्लोक पहले लेखमें उद्धृत किये जा इन श्लोकोंमें पहला श्लोक उक्त तीसरे पद्यसे चुके हैं । इनसे बिलकुल स्पष्ट होजाता है कि बहुत कुछ मिलता जुलता है । मालूम होता है यह सब कथन भले ही भद्रबाहुके वचनानुसार कि संहिताका उक्त पय इसी श्लोक परसे या लिखा गया हो, परन्तु वह खास भद्रबाहुका इसके सदृश किसी दूसरे श्लोक परसे परिवर्तित वचन नहीं है और न उन लोगोंका वचन है किया गया है और इस परिवर्तनके कारण ही जिनके प्रश्नपर भद्रबाहु उत्तररूपसे बोले थे। वह कुछ दूषित और असम्बंधित बन गया है । क्योंकि यहाँ ‘उवाच' ऐसी परोक्ष भूतकी अन्यथा, इस श्लोकमें उक्त प्रकारका कोई दोष क्रियाका प्रयोग पाया जाता है । ऐसी हालतमें नहीं है। इसका 'तेषां पद भी इससे पहले श्लोककहना पड़ता है कि यह सब रचना किसी तीसरे के उत्तरार्धमें आये हुए 'मनुष्याणां ' पदसे ही व्यक्तिकी कृति है । परन्तु ऐसा होनेपर सम्बन्ध रखता है । रहा दूसरा श्लोक, उसे पहले श्लोकमें दिये हुए उक्त प्रतिज्ञावाक्यसे देखनेसे मालूम होता है कि वह और संहिताका विरोध आता है और इसलिए सारे कथन पर ऊपर उद्धत किया हुआ पद्य नं० २ दोनों जालीपनेका संदेह होजाता है। तीसरे नम्बरके एक हैं । सिर्फ तीसरे चरणमें कुछ नाममात्रका पद्यको फिरसे जरा गौरके साथ पढ़ने पर मालूम परिवर्तन है जिससे कोई अर्थभेद नहीं होता। होता है कि उसमें 'भद्रबाहुवचो यथा' बहुत संभव है कि संहिताका उक्त पय भी इस के होते हुए 'यथोक्तम् ' पद व्यर्थ पड़ा है, दूसरे श्लोकपरसे परिवर्तित किया गया हो। उसका ‘तेषां' शब्द खटकता है और चूंकि परन्तु इसे छोड़कर यहाँ एक बात और नोट 'यथोक्त 'पद 'लक्षणं' पदका विशेषण है, की जाती है और वह यह है कि इस अध्यायमें इसलिए इस पद्यमें कोई क्रियापद नहीं है और एक स्थान पर, 'नारदस्य वचो यथा' यह न पिछले तथा अगले दोनों पद्योंकी क्रियाओंसे पद देकर नारदके वचनानुसार भी कथन कर-. उसका कोई सम्बंध पाया जाता है । ऐसी हाल- नेको सूचित किया है । यथाःतमें, इस पद्यका अर्थ होता है- 'स्त्रियोंके वाम
ललाटे यस्य जायेत रेखात्रयसमागमः। भागमें और पुरुषके दक्षिणभागमें उनका यथोक्त
षष्ठिवर्षायुरुद्दिष्टं नारदस्य वचो यथा ॥१३०॥ लक्षण भद्रबाहुके वचनानुसार ।' इस अर्थसे यह
इससे मालूम होता है कि इस अध्यायका पद्य यहाँ बिलकुल असम्बद्ध मालूम होता है और किसी दूसरे पद्यपरसे परिवर्तित करके बनाये १ वह उत्तरार्ध इस प्रकार है:- लक्षणं तु मनुजानेका खयाल उत्पन्न करता है। शब्दकल्पद्रुम- ष्याणां एकैकेन वदाम्यहम् ।
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