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________________ ६१८ जैनहितैषी - ! २ लालाजी कहते हैं कि 'जैनहितैषीको हम लोग बम्बई प्रान्तिक सभा के तिरस्कार करने से खरीदते नहीं!' मानों प्रान्तिक सभाके प्रस्ताव करने के पहले आप हितैषीको खरीदते थे, अथवा जैनसमाजके सारे ही पत्रोंके आप खरीददार हैं लालाजी साहब, जैनहितैषी के खरीदने के लिए सिर्फ रुपये ही खर्च नहीं करने पड़ते, कुछ अक्लकी भी जरूरत होती । उसके लेखोंके समझने के लिए बुद्धि चाहिए और उसके भावोंको धारण करनेके लिए विस्तृत हृदय चाहिए । वह न आप जैसों के लिए निकलता है और न आपकी और आपकी प्रान्तिक सभाकी कुछ परवा ही करता है। जैनसमाजमें सब आपके ही भाईबन्द नहीं हैं । कुछ ऐसे भी सहृदय और विचारशील हैं जो हितैषीको प्यारकी दृष्टिसे देखते हैं और उसके लिए जो परिश्रम किया जाता है- जो स्वार्थत्याग किया जाता है उसकी कदर करते हैं | उन्हींके लिए यह निकलता है । आप जैसों के सत्कार और तिरस्कार उसकी दृष्टिमें निस्सार हैं | यदि हितैषीमें कुछ 'सार' है और वह समाजसेवाकी आन्तरिक प्रेरणा से सम्पादित होता है तो उसे हजारों पढ़नेवाले मिल जायँगे । कि . ३ हाँ, वह मजेदार और मखमली जवाब तो आपने अबतक न दिया । हम देखना चाहते हैं वह, ब्रह्मचारीजीको जैसा जवाब दिया गया है, वैसा ही है अथवा कुछ और , मजा रखता है। उससे पता लग जायगा कि आप ' मजेदार किसे कहते हैं | जिस लेखमें गालियों के सिवाय कुछ हो, जान पड़ता है आप उसे ही ' मजेदार कहते हैं । परवा महीं, आप अपनी इच्छा पूरी कर लीजिए । तीर्थक्षेत्रकमेटीके इस महामान्य पदको पाकर कहीं ऐसा न हो कि आप किसी 'मजे चित रह जायँ । से Jain Education International , ४ चौथी बात हम तीर्थक्षेत्र कमेटी के मेम्बरों से कहेंगे कि आप लोग अपने इन मानीते महामंत्रीजीके मुँहमें कुछ लगाम भी लगायेंगे, या इसी तरह बकते रहने देंगे । केवल एक हिसाब के पूछनेसे इन्होंने बाबू दयाचन्दजीको मनमानी गालियाँ देने का प्रारंभ किया और उन्हें भ्रष्टपंथी अदि विशेषण दे डाले और ज्योंही उसमें रुकावट डाली गई कि ये ब्रह्मचारीजी जैसे समाजसेवकोंको सीधी गालियाँ सुनाने लगे । तुम व्यभिचारियों जैसा काम करते हो, तुम्हारे ब्रह्मचर्यमें इल्ली लग गई है, आप अपने चरित्रमें सिंवाल और जंग न चढ़ाइए, ये सब असभ्यों जैसी गालियाँ नहीं तो और क्या हैं? किसी सार्वजनिक संस्थाका - उस संस्थाका जिसमें कि गरीब और अमीर सभीने अपनी गाढ़ी कमाईका कुछ न कुछ हिस्सा दिया है - हिसाब पूछना क्या कोई अपराध है ? जो संस्थाओंका काम करते हैं उन्हें तो सब तरहसे शान्त और क्षमावान् होना चाहिए । वे इस तरह बात बातेंमें उखड़ पड़ेंगे तो काम कैसे चलेगा। अभी तो लोग कमेटी के हिसाब प्रकाशित न करनेके ही कारण आक्षेप कर रहे हैं, यदि आगे कोई यह कह बैठे कि कमेटी के हिसाबमें भी हमें सन्देह है, अथवा कमेटीका कुछ धन उसके कार्यकर्ता अपने उपयोगमें ले आते हैं, तो मालूम नहीं, कमेटी अपने इन लाड़ले लालाजीसे लोगोंको कितनी गालियाँ दिलवावेगी और इस कामके लिए पेम्पलेट: आदि छपाने में कितने रुपये बरबाद करावेगी । इस तरहकी एक बात हमको मालूम भी है, जिसके कारण लोग कमेटी पर सन्देह कर सकते और दुर्भाग्यवश वह लालजीके ही सम्बन्ध में है । गतवर्षके कार्तिक में जम्बू स्वामी के मेले पर तीर्थक्षेत्रकमेटीका जो अधिवेशन हुआ था, उसमें कमेटीका हिसाब सुनाया गया था और उसमें लाला प्रभुदयालजी महामंत्री के नाम तीन हजार रुपये निकाले गये थे । लालाखजाने से उठा ली थी। इस तरह लगभग डे जीने यह रकम कोई तीन चार महीने पहले कमेटी के ३०००५ यह रकम लालाजी के मामें पड़ रही है। तीर्थक्षेत्र कमेटीकी रिपोर्ट कोई दो वर्षसे प्रकाशित नहीं हुई है। इसलिए हम नहीं कह सकते कि यह रकम वसूल हुई है या नहीं । पर अहाँ तक सुनाया है, लालाजी इसे दे नहीं सके हैं और शायद इसके सिवाय भी उन्होंने कुछ रकम और लेली है । यह एक ऐसी बात है जिसपर लोग आक्षेप कर सकते हैं और कमेटी से इसका जबाब तलब कर सकते हैं । पर क्या कमेटीका यह कर्तव्य For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522829
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
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