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करते हैं, उसका भले ही सदुपयोग न होता हो, व्यास और भीष्म । देशकालकी दृष्टि से इन कामोंमें खर्च करना भले ही योग्य न हो, पर यह तो सोचिए कि उनके [ बंगलामें स्वर्गीय बावू द्विजेन्द्रलालरायका हृदयमें उदारता तो है, वे त्याग तो कर सकते 'भीष्म' नामका सुप्रसिद्ध नाटक है । महाभारतके
कथानकको लेकर इसकी रचना की गई है। बहुत ही हैं । केवल उदरंभर तो नहीं होते । यह उनके
अच्छा है । इसके दो दृश्योंमें व्यास और भीष्मका त्याग गणकी ही ख़बी है कि वे आपके विद्या- जो कथोपकथन है उसे हम अपने पाठकोंकी भेट दानको कुछ विशेष महत्त्वकी चीज नहीं सम- करते हैं। पहलेमें त्याग धर्मकी महत्ता बतलाई गई झते हैं तो भी आपके कहने सुननेसे उसमें है और दूसरेमें कर्तव्यकी। ] हजारों रुपया दे डालते हैं । देशके प्रत्येक
पहला दृश्य। कार्यमें प्रत्येक आन्दोलनमें वे आर्थिक सहायता [व्यासके आश्रमका उद्यान, प्रभातकाल, व्यास देते हैं और बतलाते हैं कि शिक्षासे उदारताका और भीष्म दोनों धीरे धीरे टहल रहे हैं । कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है।
व्यास-धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् __एक सौ रुपया महीना कमानेवाला साधारण (धर्मका तत्त्व गुहामें छुपा हुआ है।) अशिक्षित गृहस्थ जितना दान कर सकता है, भीष्म-तब मैं उसकी खोज कहाँ करूँ? आपके १००) रु० मासिक पानेवाले बाबू
व्यास-अपने हृदयके भीतर ।
भीष्म-उसे मैं पाऊँगा कैसे ? उससे चौथाई दान भी नहीं कर सकते हैं। गतवर्ष आपकी बम्बईमें ही इन शिक्षितोंका।
___ व्यास-अपने हृदय-मन्दिरकी ओर कान एक सम्मेलन हुआ था । बड़े बड़े वकील और
लगाकर, सावधानतासे सुनो, वह अतिशय मधुर,
. गाढ़, गंभीर, स्थिर संगीत सुनाई पड़ेगा। बैरिस्टर उसमें उपस्थित हुए थे। भारतजैन.
- भीष्म-कहाँ ! कुछ भी तो नहीं सुन महामण्डलको स्वयं धनकी आवश्यकता रहती पता भो। है, पर उसके लिए भी आपके शिक्षित '
त व्यास-देवव्रत ! अवश्य सुन पड़ेगा । सज्जनोंने कछ भी सहायता न की। उसके बाद
तुम्हें मैंने दिव्यज्ञान दिया है । अच्छा अबकी बम्बईमें श्वेताम्बर जैन कान्फरेंसका अधिवेशन
. बार सुनो, देखो वह हृदयवीणाके तारोंपर मधुर बड़ी धूमधामसे हुआ । इसका प्रायः सभी काम था काज शिक्षितोंके नेतृत्वमें हुआ था । एक दर्ज- झङ्कार हो रही है । सुनो देवव्रत ! क्यों सुन पड़ी ? नसे अधिक वकील बैरिस्टर और सालिसिटर भीष्म-हाँ, जैसे दूरस्थित समुद्रकी कल्लोउसमें शामिल थे । कान्फरेंसका चन्दा भी लकी आवाज सुनाई पड़ती है । खोला गया जिसमें लगभग चार हजार रुपया व्यास-उसका कुछ मर्म समझ पड़ा। एकत्र हुए; पर उसकी सूचीमें भी आपके शिक्षित भीष्म-नहीं, कुछ नहीं । भाइयोंके ऑकड़े नदारद ! इस तरहके और भी व्यास-अच्छा तो फिर मन लगाकर सुनो। उदाहरण दिये जा सकते हैं जिनसे आपके भीष्म-सनता हूँ। शिक्षित भाइयोंकी उदारताकी थाह मिलती है।
व्यास-देवव्रत ! सुनो, उस महागीतमेंसे क्या आप अपने शिक्षित बन्धुओंको हमारे
हमार यह ध्वनि निकलती है कि “पराये हितके अशिक्षित पुरुषोंकी उदारताका अनुकरण कर नेके लिए समझायँगे ? -एक अशिक्षित।
' लिए स्वार्थत्याग करना, यही सकल
धौंका मूल है।"
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