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________________ ४१४ a mAITINATIONAL जैनहितैषीSamMITTEEmirmitimill बहुतसा धन जेवर घड़वानेके कारण नष्ट होता लगभग ३०-३५ हजार रुपये की है-दान कर है । धनी मानी राजा महाराजा और जमींदार गई हैं और इसके लिए ९ सज्जनोंको पंच नियत इत्यादिके उस धनकी गणना की जाय जो वे कर गई हैं। इसमेंसे ५ हजार परवार जातिके जेवर बनवाने पर लगाते हैं तो उसकी संख्यासे हितार्थ, १ हजार नाँदगाँवके मन्दिरको, १हजार हमें चकित होना पड़ता है । देशमें लाखों चांदवड़के मन्दिरको और १ हजार तीर्थक्षेत्रोंको; सुनार इसी काममें लगे हुए हैं जिससे कोई लाभ इस तरह आठ हजार रुपये देनेके लिए तो वे नहीं है । यदि यही रुपया इस निरर्थक काम स्वयं बतला गई हैं और शेष २५-३० हजार पर न लगाया जाकर किसी उपयोगी कार्य पर रुपयोंके लिए लिख गई हैं कि वे किसी योग्य लगाया जाय तो देशको भारी लाभ पहुँच पाठशालाको दे दिये जायँ । अब प्रश्न यह है सकता है । इस रुपयेसे कला कौशलकी शिक्षा कि पंच महाशय योग्य पाठशाला ' किसको और अछूत जातियोंका सुधार भी अनायास हो समझें और किसको उक्त सम्पत्ति दी जाय । सकता है और इससे वह लाभ हो सकता है यद्यपि इसका विचार करना पंचोंके ही आधीन जिसके लाभका कोई ठिकाना नहीं। खेद है है-उन्हींको यह अधिकार है, तो भी समाचारकि सोशियल कान्फ्रेंस जो अनेक कुरीति सम्ब- पत्रोंमें इसकी चर्चा उठी है और लोग इस विषन्धी प्रश्नोंपर विचार किया करती है उसने भी यमें अपनी अपनी सम्मतियाँ दे रहे हैं । जैनमिआज तक इस प्रश्नको अपने हाथमें नहीं लिया। के एक लेखककी राय है कि यह सम्पत्ति सौभाग्यसे अब जनताका ध्यान इस ओर आक- मोरेनाके सिद्धान्तविद्यालयको देना चाहिए, र्षित हो गया है, अतः सब कामोंको छोड़कर दिगम्बर जैनकी राय है कि मोरेना, मथुरा हमें प्रथम बच्चोंको जेवर नहीं पहनानेके आन्दो- काशी, हस्तिनापुर ये चार संस्थायें मुख्य हैं, लनमें भाग लेना चाहिए। आशा है कि मेरे इसलिए इनमेंसे किसी एकको मिलना चाहिए । भाई भविष्यतकी भारतीय सन्तानको कालके पर हमारी समझमें इस सम्पत्तिको उपयोगमें मुखसे बचानेमें कोई कसर : लानेका सबसे प्रथम अधिकार दक्षिण महाराष्ट्रहीइस विषय पर एक ट्रैक्ट भी लिखा है, जिसमें की किसी संस्थाको है। दक्षिण महाराष्ट्रका बताया है कि हरसाल कितना रुपया भूषण जैनसमाज अज्ञानके गहरे अन्धकारमें पड़ा हुआ बनवानेके कार्य पर व्यय हो जाता है । उसीमें है। धार्मिक ज्ञान तो दूर रहा, वहाँ मामूली साधुओंकी वर्तमान दशा पर भी प्रकाश डाला लिखना-पढ़ना जाननेवाले लोगोंकी भी बहुत गया है। दो पैसेका टिकट भेजने पर निम्न कमी है। निजामके राज्यमें शिक्षा-संस्थाओंकी लिखित पतेसे यह ट्रैक्ट प्राप्त हो सकेगा। बहत ही विरलता है और उसीके उत्तर भाग " दहलराम गंगाराम जमींदार, डेरा इस्मा- अधिकांश खंडेलवाल तथा दूसरे जैनी रहते हैं। ईलखां (पंजाब)।" हम स्वयं उस ओर देखकर आये हैं कि उनमें शिक्षाका प्रायः अभाव है। ऐसी दशामें आवश्य१० एक दानद्रव्यका उपयोग। कता है कि सबसे पहले इस दान-द्रव्यसे उन्हीं नांदगाँवनिवासी सेठ हीरालालजीकी पत्नी की अज्ञानता दूर करनेका प्रयत्न किया जाय। अपनी मृत्युके समय अपनी तमाम सम्पत्ति-जो या तो इसके लिए किसी सुभीतेके स्थानमें नई For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.522827
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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