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SHARMATIALA M ILITARA
जैन लेखक और पंचतंत्र ।
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ग्रंथ है, जिसमें ३७०० श्लोक हैं । यदि क्योंकि इस ग्रंथकी भाषा प्राचीन गुजराती है कोई महाशय मुझे इस ग्रंथका कुछ हाल जिसमें यत्र तत्र मारवाड़ी शब्दोंके रूप भी लिख भेजें अथवा इसकी एक प्रति मेरे पास मिलते हैं । उसने मूलकथाको छोड़कर देखनेके लिए भेज दें, तो मैं उनका बड़ा अंतर्गत कथाओंको एक एक करके लिख आभार मानूँगा।
दिया है। प्रत्येक कथाके शीर्षक पर संस्कृतपरन्तु जैनोंने केवल संस्कृतमें ही पंचा- का एक कथा-श्लोक है । चूंकि इनमेंसे ख्यानकी आवृत्तियाँ नहीं लिखीं-जिन्हें बहुतसे श्लोक अशुद्ध हैं और उनका अर्थ केवल 'शिष्ट' ( विद्वान् ) ही समझ सकते हैं- भी उनके नीचे दी हुई कथाओंके उपयुक्त किन्त उन्होंने इस ग्रंथका प्रचार सर्वसाधा- नहीं है, इससे जान पड़ता है कि ग्रंथरण जनतामें भी उनकी मातृभाषा द्वारा कतो विद्वान् न था । इस लिए उसने वे किया । पूनाकी डैकन-कालिज-लाइब्रेरीके कथायें भी ( जिनकी संख्या २७ है ) दे
और कलकत्ताकी संकृत-कालिज-लाइब्रेरी- दी हैं, जो सरलावृत्ति अथवा पूर्णभद्रकी के बहमूल्य हस्तलिखित ग्रंथोंके संग्रहोंमें कई आवृत्तिमें हैं । हाँ, इनमेंसे अधिकांश कथाआवृत्तियाँ 'देशीभाषाओं में हैं। ये सब ओंका रूप बदल दिया गया है और निस्संआवृतियाँ और इन्हींके साथ इन पुस्तकाल- दह इसा रूपम व
हीके साथ काल- देह इसी रूपमें वे उस समय उत्तर गुजरातयोंकी पंचाख्यान और पंचतंत्रकी अन्य सभी की जनताम जनश्रुतियोंके आधार पर प्रचहस्तलिखित प्रतियाँ मेरे पास परीक्षाके लिए लित होंगी, और निस्संदेह यह एक ऐसी आगई थीं । इस परीक्षाके परिणाम ये हैं:- बात है, जिससे इस ग्रंथका मूल्य बहुत बढ़
गया है। डैकन कालिजके सन् १८८५ ई० के डैकन-कालिज-लाइब्रेरीके दो और हस्त७४१ नं० के ग्रंथमें कथाओंका एक संग्रह लिखित ग्रंथोमें, जिनका नं० ४२४ ( सन् है, जिसका नाम पंचाख्यानवार्तिक, अथोत् १८७९-८० ई० ) और २८९ (सन् पंचाख्यानकी टीका अथवा अनुवाद है। १८८२-३ई.)है एक जैन विद्वान् यशोधीरयह ग्रंथ बड़े महत्त्वका है, क्योंकि इसमें कृत पंचाख्यान है। कर्ता का नाम सची२२ नई कथायें हैं, जिनमेंसे कुछ कथायें पत्रमें यशोधर लिखा है, जो अशुद्ध है। पंचतंत्रकी एक मराठी आवृत्तिमें, यह ग्रंथ सरलावृत्ति और पूर्णभद्रकी आवृत्तिदक्षिण-भारतकी एक आवृत्तिमें और एक का मिश्रित अनुवाद है। अनुवादकी भाषा नैपाली आवृत्तिमें भी मिलती हैं। इसका प्राचीन गुजराती है। यह अनुवाद गद्यमें है कर्ता अवश्य एक जैनश्रावक होगा, जो और इसकी लेखन-शैली पंचाख्यान वार्तिककी गुजरातमें मारवाड़की सीमा पर रहता होगा। शैलीसे बहुत अच्छी है। कई स्थानों पर
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