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________________ सुखका उपाय। ३३५ भीतरी क्षेत्रसे निकलते हैं जिसमें वह अब धीरे अपने आत्मिक शत्रु पर विजय प्राप्त तक रहा है। यह जान कर उसे इस बातका कर लेगा और अंतमें उसे सत्यका ज्ञान निश्चय होना चाहिए कि मझे बराईपर विजय हो जायगा । शत्रु कौन है ? हमारे ही काम, प्राप्त करना है। स्वार्थ और अभिमान हमारे शत्रु हैं । यदि । इन्हें नष्ट कर दिया जाय, तो बुराई भी नष्ट जब मनुष्य खूब लुभाया जाय तो उसे ' हो जाती है और भलाई पूर्ण कांति और प्रभाशोक नहीं करना चाहिए किंतु हर्ष मनाना के लाथ प्रगट हो जाती है । * चाहिए कि इससे उसकी शक्तिकी परीक्षा होती है और उसकी निर्बलता प्रगट होती है। जो मनुष्य अपनी कमजोरीको ठीक Prastavasthaaicanteedsanileoteastuvsauga ठीक जानता है और उसको मानता है, वह शक्तिके प्राप्त करनेमें आलस न करेगा। सुखका उपाय है sharnerrormergraEArgengrnar marwarrants ___ मूर्खजन अपने पापों और अपनी त्रटि (ले०-बाबू जुगलकिशोरजी मुख्तार ।) योंके लिए दूसरोंको दोष दिया करते हैं, परंतु सत्यके प्रेमी अपने आपको दोष दिया जगके पदार्थ सारे, करते हैं । अपने चालचलनकी जिम्मेवारी मनु- वर्ते इच्छानुकूल जो तेरी। प्यको अपने ऊपर लेनी चाहिए और यदि तो तुझको सुख होवे, पर ऐसा हो नहीं सकता। कभी गिर जाय, तो यह कभी न कहना (२) चाहिए कि यह चीज अथवा वह चीज, यह क्योंकि परिणमन उनका, मनुष्य अथवा वह मनुष्य दोषके भागी हैं। शाश्वत उनके अधीन ही रहता। दूसरे लोग हमारे लिए अधिकसे अधिक यह जो निज अधीन चाहे, वह व्याकुल व्यर्थ होता है। कर सकते हैं कि वे हमारी बुराई अथवा (३) भलाईके प्रगट होनेके अवसर उपस्थित कर इससे उपाय सुखका, देवें, किंतु वे हमें अच्छे या बुरे नहीं सच्चा, स्वाधीन वृत्ति है अपनी। बना सकते। राग-द्वेष-विहीना, क्षणमें सब दुःख हरती जो ॥ - पहले पहले लोभ बहुत तीव्र होता है और उसके दबानेमें बड़ी कठिनाई मालूम * जेम्स एलनकी From Passion to Peace होती है । परंतु यदि मनुष्य दृढ़ बना रहे नामक पुस्तकके Temptation शीर्षक निबंधका और उसके बहकावेमें न आवे, तो वह धीरे भाषानुवाद । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522827
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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