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पुनर्विवाह विधेय नहीं निषिद्ध है। mintinumbtimummimimifiniminiminine
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जायेंगे, जो कि अनेक अंशोंमें पुनर्विवाहको ज- शरीरका स्थायी आरोग्य सिद्ध नहीं होता है, न्म देनेवाले हैं और इससे दुःखकी परम्परा कभी उसी प्रकार समाज-शरीरके विषयमें भी समझना बन्द न होगी। जिन कारणोंसे हम छोटी छोटी चाहिए । तात्कालिक उपाय करनेसे जिस प्रकार लड़कियोंकी दयायोग्य दशाको देखकर, विष · कुछ आराम मिलता है, उसी प्रकार पुनर्विवाहसे की ओषधि विष समझकर, पुनर्विवाह करनेके मिलेगा-हम यह नहीं कहते कि न मिलेगा और लिए लाचार होते हैं उन कारणोंको किसी तरह वह मिले तो अच्छा, ऐसा हम चाहते हैं; परन्तु सबल न होने देना चाहिए । हमारा आचार ऐसा मूल दोषके दूर करनेकी ओर जो ध्यान नहीं न होना चाहिए जिससे कि वह बुरा रिवाज सदा- दिया जाता है उसे हम बहुत ही बुरा समझते हैं के लिए गढ़ बाँधकर रह जाय कि जिसके कार- और इससे भी बरी बात यह है जो यह निषिद्ध - ण इस समय हम पुनर्विवाहके लिए लाचार हुए आचार विधेयाचार समझा जाने लगा है और हैं । तात्कालिक दुःख दूर करनेके लिए लोगोंको इस समय सुधारका शुभचिह्न गिना जाने लगा है। अधिक सहनशीलता धारण करनेका उपदेश दो -ऐसा प्रयत्न करो जिससे वे पुनर्विवाहको सह- "
. सुधारकोंको चाहिए कि पुनर्विवाहका प्रचार न कर लें; परन्तु ऐसा प्रयत्न मत करो जिससे यह
करनेके पहले विवाहकी जो अव्यवस्था है उसे उपायरूप अनिष्ट आचार सदाके लिए हमारे गले व्यवस्थित करनेकी कोशिश करें। जब तक बँध जाय। पुनर्विवाहको विधेय कोटिमें मत ले जा जातियों और उपजातियोंके बन्धनके कारण ओ; परन्तु जिस निषेध कोटिमें वह है उसीमें रहने स्त्रीपुरुष वर कन्या पसन्द करनेमें स्वतंत्र नहीं देकर उसे सिर्फ आपद्धर्म-लाचारीके कारण धारण हैं तब तक विवाहपद्धति व्यवस्थित नहीं हो किया हुआ रिवाज-समझो। सुधारकोंका काम है सकती । हमे यहाँ फिर कहना पड़ता है कि सद्विचारकी प्रवृत्ति करना । उसे छोडकर अपनी मतमतांतरोंके कारण जो वर्तमान जातिभेद हो शक्तियोंको दूसरी ओर-असद्विचारों की प्रवत्तिकी गया है, उसे छोड़कर जब प्राचीन चातुर्वर्णिक ओर-लगाना हमें तो उचित नहीं जान पड़ता।अना- धर्म स्थिर किया जायगा तभी हमारी अनेक ड़ी वैद्योंकी पद्धतिपर चलना अच्छा नहीं। शरीरमें सांसारिक अडचनें दूर हो सकेंगी, नहीं तो जो दोष हो गये हैं उन्हें दूर करनेकी दवा न देकर नहीं । सुधारकोंके द्वारा विवाहके शुभ विचारके केवल उस दोषके कारण उत्पन्न हुए तात्कालिक साथ साथ जातिबन्धनके शुद्ध रूपका विवेचन कष्टोंको दूर करनेका प्रयत्न करनेसे जिस प्रकार होनेकी भी पूरी पूरी आवश्यकता है।
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