SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ HOLIDAmmam जैनहितैषी सन् १८७२ ई० में पाउल हेनलाइनने एक डिगरी तक दिशाओंको बदलकर उड़ाया जा नई तर्जका विमान बनाया, इसकी आकृति एक सकता था । . विचित्र ढंगकी थी। फाँसमें डि लोमके बाद तीन चार और भी पहले करघेके सिटलके आकारके जिस व्योम- वायुयान बने, वे प्रायः बिजलीकी शक्तिसे चलनेयानका वर्णन लिखा है उसके दोनों सिरे सकरे थे वाली मोटरकी सहायतासे भ्रमण करते थे ! परंतु यह केवल एक ही ओर सकरा था और इसके पश्चात् सेनापति रेनार्ड और केवसने जिन उस जगहसे वह क्रमशः चौंड़ा होता गया था। व्योमयानोंका आविष्कार किया उन्होंने मानों इसके नीचे कोयलेकी गैस (Coal gas ) स्वेच्छासे चलनेवाले व्योमयानोंका रास्ता खोल से परिपूर्ण एक एंजिन लगाया जाता था । दिया। उन्होंने १८८४ ई० में जो व्योमयान यह ऍजिन गैसको जला कर चलाया जाता बनाया था वह देखने में मछलीक आकारका था । पूर्वोक्त व्योमयान गैस कम हो जानेपर और पहले बने हुए विमानोंसे बहुत बड़ा था ! आकृतिमें छोटा हो जाता था। इसी दोषको ९ घोड़ोंके ताकतकी एक बहुत हल्की बिजलीकी दूर करनेके लिए व्योमयानके एक मध्यस्थ माटर एक पंखेको प्रति मिनिटमें ५० वार गोलेको एक पंपकी सहायतासे सदैव वायुपूर्ण घुमाती थी । यह पंखा सामनेकी ओर लगा रखते थे। उक्त ऍजिनके एक Trapezium के रहता था । इस पंखेके चलनेसे समस्त यंत्र आकारके डानेको घुमानेसे सब यंत्र चलते थे। वायमें सहज ही उड़ सकता था। बेलनके नीचके यह व्योमयान प्रति सेकंडमें प्रायः पाँच फुटके भागमें जो बैठनेकी जगह थी, वह रस्सीकी बगेसे चल सकता था। इसके निर्माता धनाभावके सहायतासे खूब मजबूतीके साथ उपर मत्स्याकृकारण और परीक्षा करनेमें समर्थ नहीं हुए। तियंत्रसे बँधी रहती थी । यदि बेलुनके वजनका सन् १८७२ ई० में फ्रान्स और प्रशियाके केन्द्र किसी तरफ हट जावे, तो उसको ठीक युद्धके समय फ्रान्सके अधिकारियोंने इपय टि करने के लिए एक झूला लगा रहता था । उसे लोमको व्योममान निर्माण करनेके लिए नियुक्त एक बाजूसे दूसरी बाजूतक ले जाकर यंत्रके किया था। उस समय तक जितने व्योमयान वजनको समतोलकर देते थे और इसके द्वारा बने थे वे सब बिजलीकी शक्तिसे चलनेवाली यंत्रका हिलना डुलना या किसी एक ओरका मोटर या गैससे चलनेवाले ऍजिनोंकी सहाय- झुकना बंद हो जाता था । इस बेलूनका नाम तासे वायुमें विचरण करते थे किन्तु डिलोमने 'ला-फ्रांस ' रक्खा गया था। पहले इस के fiउन उपायोंका अवलम्बन न करके मनुष्यशक्तिसे मार्ता लोग किसी निर्दिष्ट स्थानसे उक्त यापही चलानेका उपाय निकाला था । उन्होंने अपने बैठकर परिस नगरके ऊपरसे अनेक चक्कर वह नवीन व्योमयानमें एक वायुपूर्ण गोलेका व्यव- कर वापिस लौट जाते थे । किसी स्थ वाद हार किया था । उस गोलेके साथ रस्सीकी यात्राकरके फिर उसे अपनी शक्तिसे उगर सहायतासे एक पंखोंवाला यंत्र नीचे लटका स्थानपर लेजाना-इसका आविष्कार सबसे पह। रहता है । आठ आदमी ताकतके साथ उन इसी यानके निर्माताओंने किया था। यह विमा पंखोंको घुमाते थे। इससे यंत्र प्रति सेकंड ४ प्रति सेकंड २१ फुटके हिसाबसे-हिले डुले य - फटकी गतिसे चलता था और इच्छानुसार १० कंपित हुए बिना चल सकता था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522825
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy