SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ALANATIMILLLLLLLAHABALLIATERIALUIRY 4SE बम्बईम भारतजैन महामण्डल iummTRYIRI UTTRO नगरकी जैनधर्मप्रसारक सभा, बम्बईका देव- यह नाटक देखते हुए बड़े धैर्यके साथ अन्ततक चन्द लालचन्द पुस्तकोद्धार फण्ड, काशीकी बैठे रहे ! उस दिन कई सज्जनोंकी ओरसे जब जैनसिद्धान्तप्रकाशिनी संस्था, निर्णयसागर बहुत ही जोर दिया गया तब दूसरे दिनकी प्रेस, आदि संस्थाओंने क्या जैनसाहित्यकी सभामें गुजराती हिन्दीकी कुछ सुनाई हुई । कुछ कम सेवा की है, जो उनका नामोल्लेख भी बम्बईकी पचरंगी प्रजाके सामने माननीय पं० न किया गया और दो चार पुस्तकें छपाने- मदनमोहन मालवीय जैसे अँगरेज़ीके सुवक्ताने वालोंकी प्रशंसा की गई ? हम बाबू देवेन्द्र. तो अभी उस दिन हिन्दीमें व्याख्यान दिया प्रसादजीके उद्योगकी स्वयं प्रशंसा करते हैं जिसमें हिन्दू यूनीवर्सिटीके चन्देके काममें और उनके कार्यको प्रेमकी दृष्टिसे देखते हैं; अच्छी सफलता प्राप्त हुई; परन्तु हमारे जैनशिक्षिपरन्तु नये नये और अल्प कार्यके लिए तो तोंने अपने गुजराती-हिन्दीभाषाभाषी भाइयोंकी खास प्रस्ताव किया जाय और दूसरे बहुत सम- सभामें अँगरेजी भाषामें ही बोलना पसन्द किया ! यसे काम करनेवालोंको भुला दिया जाय, जहाँ स्वभाषा और स्वजातिकी इतनी अवहेलसाथ ही सब्जैक्ट कमेटीकी आँखोंमें धूल डाली ना की जाती है, वहाँ सफलताकी आशा जाय, इसे हम कदापि अच्छा नहीं कह सकते । रखना व्यर्थ है ! हमारे समाजके शिक्षित पुरुषोंकी सभी लीलायें इस लेखको समाप्त करनेके पहले, मण्डलने निराली हैं। वे सेवा तो करना चाहते हैं अपने इस अधिवेशनमें क्या क्या कार्य किये जैन समाजकी-जिसमें हजार पीछे पाँच आदमी उन पर हम एक साधारण नजर डाल जाना भी अँगरेज़ी नहीं समझ सकते हैं-पर काम चाहते हैं। करते हैं सात समुद्र पारकी अँगरेज़ी भाषाके पहला दिन तो सभापतिके व्याख्यानमें और द्वारा ! इस विषयमें वे अपने निजत्वको बिल. मण्डलकी रिपोर्ट सुनानेमें समाप्त हो गया कुल ही भुला बैठे हैं। उन्हें अपनी मातृभाषामें जिसका एक भी शब्द साधारण लोगोंकी समबोलना लज्जाकर प्रतीत होता है और यही झमें न आया । रातका २॥ बजे तकका समय कारण है जो उनके द्वारा कुछ भी उल्लेख सब्जैक्ट कमेटीमें गया और सो भी लाभके योग्य कार्य नहीं होता है । मण्डलकी बदले हानिके व्यापारमें ! दूसरे दिन ४ घंटेमें सब्जैक्टकमेटीका और सभाका कामकाज सब मिलाकर १० प्रस्ताव और व्याख्यान हुए ! अँगरेज़ीमें ही हुआ था । प्रारंभसे ही मेम्बरोंकी राजभक्ति और ब्रिटिश-जयकी प्रार्थना, स्वर्गस्थ ओरसे हिन्दी या गुजरातीमें काम करनेकी जैनोंके विषयमें शोकप्रदर्शन, शिक्षाप्रचारके वारवार प्रार्थना की गई; परन्तु उस पर कुछ लिए विद्वानोंकी एक कान्फरेंस होनेकी सूचना, भी लक्ष्य नहीं दिया गया । पहले दिनकी शिक्षासम्बन्धी और अन्य सरकारी रिपार्टी में बैठकका प्रायः सारा काम काज अँगरेज़ीमें जैनोंका जुदा खाना रखनेकी प्रार्थना, तीनों हुआ जिसे देखकर बड़ा ही अफसोस हुआ। सम्प्रदायोंमें एकता रखनेकी सलाह, कुरीतियाँ उपस्थित ७००-८०० आदमियोंमेंसे अधिकसे दूर करनेकी सलाह, जैनसाहित्यप्रचारकी अधिक१००पुरुष ऐसे होंगे जो अँगरेज़ीको अच्छी सलाह, और सभापतिके प्रति कृतज्ञताप्रकाश । तरह समझते हों, शेष लोग अपने शिक्षितोंका दशवाँ प्रस्ताव कार्यरूप था जिसमें जैनोंकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522822
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy