SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -६२ जैनहितैषी - -रका धर्मसिद्धान्त है । यदि कामवासनाको जीतना - ही धर्म है, तो यह पुरुष और स्त्री दोनोंके लिए 'एक सा पालनीय होना चाहिए | अपने पचास - वर्षकी उमरके पिता, काका या मामा आदिको नई ब्याही हुई १४-१५ वर्षकी बालिकाके साथ हँसते-आनन्द करते देखकर एक बाल`विधवाका ब्रह्मचर्यमें अटल रहना, हम नहीं समझते कि हमारा समाज कितना सहज सझ • झता है ! समाजका कर्तव्य है कि वह इन सब बातों - पर अच्छी तरह विचार करे और ब्याहको धार्मिक नहीं किन्तु व्यावहारिक बन्धन समझ कर ..इसके लिए नये सिरेसे उचित नियमोंका संगठन करे । समाजसंरक्षणके लिए उचित नियमोंके संगउनकी बहुत बड़ी आवश्यकता है। इसके बिना स्वच्छन्द दुराचार आदि अनिष्टकर दोष दूर नहीं हो सकते । समाजके नियम जुदी जुदी प्रकृतियों, न्यूनाधिक योग्यताओं, और कुदरत के • कानूनों को ध्यान में रखकर बनना चाहिए जिससे छोटे बड़े, धनी निर्धन, पण्डित मूर्ख आदि सबको स्थान मिले और सबकी क्रमशः उत्क्रान्ति होती रहे । नियमसंगठन करते समय निम्न लिखित बातोंपर विशेष ध्यान देना चाहिए: १ अखण्ड ब्रह्मचर्यको श्रेष्ठ पद दिया जाय और यह मूर्खतापूर्ण विचार दूर कर दिया जाय कि पुरुष या स्त्रीके लिए विवाह करना अनिवार्य है - लाजिमी है, और यह प्रचार कर दिया जाय कि यदि वे चाहें तो आजन्म ब्रह्मचारी भी रह सकते हैं । २ ब्याह पुष्ट अवस्थामें किये जायँ जिससे शरीरबल, मनोबल, अनुभव, बुद्धिवैभव आदिका यथेष्ट विकास हो सके और स्त्रीपुरुष दोनों ही Jain Education International अपने विवाहित जीवनको एक वीरयोद्धा के समान बिता सकें तथा विपत्तियों, प्रतिस्पर्द्धाओं, और प्रलोभनोंके आनेपर उनसे सफलतापूर्वक युद्ध कर सकें । ३ योग्य वय और योग्य शक्तियाँ प्राप्त कर चुकनेपर जो पुरुष या स्त्री अविवाहित जीवन व्यतीत करना चाहें वे श्रेष्ठ मनुष्य समझे जावेंउनका खूब सम्मान किया जाय और जो सारी योग्यतायें प्राप्त करके ब्याह करने के लिए तैयार हों, समाजमें उन्हें दूसरे नम्बरका स्थान दिया जाय । ४ योग्यता प्राप्त करनेके बाद जो ब्याहसम्बन्ध होंगे हमारा विश्वास है कि वे चिरस्थायी षोंमेंसे बहुत कम ऐसे निकलेंगे जो एकके मरने पर सुखप्रद होंगे और इस लिए ऐसे सुखी स्त्रीपुरुदूसरा सम्बन्ध करनेके लिए तैयार हों । उनकी इच्छा ही न होगी कि हम दूसरा ब्याह करें। यदि किसीकी ऐसी इच्छा हो तो उसकी गणना ( चाहे वह पुरुष हो या स्त्री ) तीसरे दर्जेमें तियोंके अनुसार ब्याह करने न करनेकी आज्ञा करना चाहिए और समाजको उसकी परिस्थिदेनी चाहिए । ५ जिन कारणोंसे विधवा स्त्रियोंको फिरसे लिए विधवाश्रम खोलने चाहिए। इन आश्रमोंमें ब्याह करनेकी इच्छा होती है, उन्हें मिटाने के विधवाओंका पालन-पोषण भी होगा, आत्मबल और संयमकी शिक्षा भी मिलेगी और पारस्परिक होगा। इन आश्रमोंपर उच्च श्रेणीकी ब्रह्मचारिणसहवास, सहानुभूति और आश्वासनों का भी लाभ की बहुत ही कड़ी-बहुत ही कठोर देखरेख होनी चाहिए और ऐसी शिक्षा देनेका प्रबन्ध होना चाहिए जिससे ये निःस्वार्थ सेविकाओंके समान समाजकी सहायिका बन सकें । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522822
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy