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जैनोंकी वर्तमान दशाका चित्र। एक सच्चे नाटकका अभिनय।
[ लेखक, श्रीयुक्त बाडीलाल मोतीलाल शाह ] रविवारका सन्ध्यासमय है । अभी अभी डकर तुम्हें फिर एकवार सूचना देने आया हूँ। छहका घंटा बजा है । मैं एक स्वानुभवी तत्त्व- क्या तुम नहीं जानने कि 'अति सर्वत्र वर्जयेत्? ज्ञानीके ग्रन्थको लेटे लेटे बाँच रहा था । जीवन-नाटकके अभिनयका आनन्द कैसे अनुभव
मैं उठकर बैठ गया और डाक्टरको कुरसीपर किया जाय, इस विषयमें उक्त तत्त्वज्ञानीके ,
- बैठनेके लिए कहकर बोला-"भाई, तुम ज़रा विचार पढ़कर मेरे मुँहसे एकाएक निकल पड़ा साचा, ता मालूम हु।
सोचो, तो मालूम हो कि यह सनक भी एक -"शाबास मित्र, शाबास !"
अमूल्य चीज़ है । बाँचने और सोचने विचार
नेसे यदि मनुष्य सनकी पागल या मृत हो मेरे इन शब्दोंके निकलनेके साथ ही किसीने जाता हो, तो भी मैं कहूँगा कि बाँचने और कहा-"शाबास सनकीजी, शाबास !" देखता विचारनेकी यह बहुत ही थोड़ी कीमत है । यदि हूँ तो मेरे मित्र डाक्टर रामलाल सामने इससे भी अधिक कीमत देना पड़ती हो तो खड़े हैं। चार नजरें होते ही वे बोले-"इस सन- भी ये रत्न खरीदनेके योग्य हैं । तुम्हारी इस कको अब छोड़ दो, तो अच्छा हो। अपने लिए सनक-पागलपन और मौतसे डरनेवाली दुनिया नहीं तो मेरे जैसे स्नेहियोंके लिए ही-कमसे कम तो जीवित रहनेपर भी मुरदोंकेसे दिन पूरे ४-६ महीनेको तो यह पागलपन छोड किया करती है और सदा रोती हुई शकल
दो। यदि न छोड़ोगे तो मैं कहे देता हूँ कि तुम्हें बनाये रहती है; मानों मौतके मुँहमें ही निवास - - पागलखानेसे या मरघटसे आमंत्रण आये बिना करती हो ! पर मेरी दशा देखो; मुझे इस विचा
न रहेगा। महीनों बीत गये, तुम बीमार हो। रसागरमें डुबकी लगानेसे एक प्रकारका नया मैं कह कहकर थक गया कि बीमारीका कारण जीवन मिलता है और इस कारण चाहे जितना कोई रोग नहीं, किन्तु यह सनक ही है, तो भी बीमार रहनेपर भी मैं नई शक्ति और आनतुमने इसे छोड़कर शामको टहलनेके लिए जानेका न्दका अनुभव किया करता हूँ । 'अति सर्वत्र आरंभ न किया । बाँचने और सोच विचार कर- वर्जयेत् ' यह बोधवचन उन लोगोंके लिए नेका आनन्द तुमसे नहीं छूटता और यही है जो अपने आपको बोध नहीं दे सकते हैं । कारण है जो तुम्हें यह बीमारी नहीं छोड़ती। हम जैसे सनकियोंको तो दूसरोंके ग्रथित किये शरीरकी ओरसे इतने ला-परवा रहना, इससे हुए नीतिसूत्रोंकी धज्जियाँ उड़ानेमें और सच्चे सूत्र बढ़कर मूर्खता और क्या हो सकती है ? मैंने बनानेमें ही आनन्द आता है और इसी कारण
आज सुना कि तुम्हारी तबीयत बहुत ख़राब हमें कोई भी वचन डरावना नहीं मालूम होता। . हो रही है, इस कारण और सब कामोंका छो- जो 'अति' दूसरोंके लिए भयस्थान है, वह
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