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_बादशाहकी दुलहिन । Timittinnitunnilimfii
जिससे नसैनीपर चढ़े हुए मुसलमान लुढ़क उसमें कूदने लगीं और सबेरा होते होते उस लुढ़ककर खाईमें जा गिरे । किलमें पैठनेके किलेमें एक भी स्त्री जीती न बची ! लिए अनेक यत्न करनेपर भी जब मुसलमानोंको सफलता न हुई, तब उन्होंने स्थायी स्त्रियोंकी ओरसे निश्चिन्त होकर अब घेरा. डाल देनेका निश्चय कर लिया। इसके राजपूत-वीरोंने अपने बलिदानकी तैयारी की। सिवाय पर्वतसिंहको ठिकाने लानेका और कोई सबेरा होनेके पहले ही तीन हजार राजपूत केसउपाय भी न था।
रिया वस्त्र पहने हुए किलेके भीतरी फाटक पर धीरे धीरे तीन महीने बीत गये। अब राजपूतों- एकत्रित हो गये। वहाँ उन्होंने एक दूसरेके को रसदकी कमी मालम होने लगी । बाहरसे गले लगकर हमेशाके लिए बिदा माँग ली और किसी प्रकारकी सहायता पानेकी भी आशा किलेका फाटक खोल दिया । इस वीर अभिन थी। अब पर्वतसिंहको चिन्ताने सताया। नयके प्रधान नायक पर्वतसिंह, और उसके युवउसने अपने साथियों समेत दृढ प्रण किया था राज कुमार रामसिंहके पीछे पीछे सारे राजपूत कि मर मिटना पर आत्मसमर्पण न करना । एक तन एक मन होकर शत्रुदलपर इस प्रकारसे राजपूतोंको अपने प्राण देना कोई कठिन काम टूट पड़े जैसे भेड़ोंके झुंडपर भूखा भेड़िया न था; पर उन्हें चिन्ता यह थी कि हमारे पीछे टूटता है । हमारी स्त्रियों और बेटियोंकी क्या दुर्दशा होगी। मुसलमान-सेनाने अपने बचावके लिए खाई __ और कोई उपाय न देखकर उन्होंने अपने खोद रक्खी थी और उसीकी मिट्टी धलि-कोट चिर-प्रचलित जौहर व्रतकी उद्यापना करनेका बना रक्खे थे । राजपूतदल कोटरक्षकोंको ही निश्चय किया। सारी स्त्रियाँ प्रसन्नतापर्वक मारता-काटता हुआ सारी रुकावटोंको पार अनिमें जलजाने के लिए तैयार हो गईई करके शत्रुओंके मध्य में जा घुसा । पास ही बाटस्त्रियोंने यह इच्छा की कि हम अपने पति-पिता शाहका खेमा था जिस पर नीला निशान फहरा पुत्रोंके साथ हथियार बाँधकर लड़ें और उनकी
" रहा था। राजपूत यवनसेनाको चीरते हुए शाही. यथासाध्य रक्षा करें; परन्तु पर्वतसिंहकी स्त्रीने
खेमेकी ओर बढ़ने लगे। मुसलमानोंने उनको जो सबकी शिरोमाण थी, उन्हें ऐसा करनेसे .
रोकनेकी बहुत चेष्टा की; परन्तु वह निष्फल हुई। रोका और कहा-नहीं यह मार्ग स्त्रियोंके लिए।
उनके भयंकर वेगको रोकना असंभव हो गया। निरापद नहीं है । चलो, हम सब चिताका
बादशाह आपत्तिको बिलकुल समीप आई देखआलिङ्गन करें और अपने पति पुत्रोंके पहुँचने
कर उठ खड़ा हुआ और शीघ्र हथियार बाँधकर के पहले ही स्वर्गमें जा पहुंचे।
हाथी पर सवार हो गया । जो मुसलमान सिपाही
राजपूतोंके असह्य आक्रमणसे घबड़ाकर तितर .. रातको एक बड़ी भारी चिता तैयार की गई। वितर हो गये थे उन्हें एकत्र करके वह मुकादेरकी ढेर लकड़ियाँ एकही करके उनमें मनों घी बिलेके लिए तैयार हो गया। राजपूतोंका हमला और राल डाल दी गई । इसके बाद उसमें आग अचानक हुआ था, इस कारण मुसलमान दलमें लगाई गई जो देखते देखते आसमानसे बातें करने खलबली मच गई थी। जबतक मुसलमान सिलगी । राजपूत वीरांगनायें एक एक करके पाही तैयार होकर मोरचेबन्दी पर हुए तब
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