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________________ जैनहितैषीका कायापलट । जैनहितैषीका कायापलट । जो इसरू नये वर्ष में नया आकार, नया रूप, नई बात । Jain Education International ७६१ इस अंक के साथ जैनहितैषी वर्ष समाप्त होता है। अब आगामी वर्ष में हमारे ग्राहक इसे एक नये ही रूपमें और नये ही आकार में देखेंगे । इसका साइज़ वर्तमान साइजसे दूना कर दिया जायगा । कागज बढ़िया लगेगा । पृष्ठसंख्या डेढगुनी से भी अधिक कर दी जायगी और हो सका तो प्रत्येक अंकमें कुछ चित्र भी रहा करेंगे । कवर पेज बहुत ही सुन्दर और मनोरम होगा । लेखों में भी विशेषता होगी। प्रत्येक अंकमें सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और नैतिक लेखों के सिवाय शिक्षाप्रद उपन्यास, गल्पें, मनोविनोद और महापुरुषोंके जीवनचरित भी रहा करेंगे। ऐसा कोई अंक न होगा जिसमें कोई जीवनचरित और उपन्यास न हो । स्त्रियोपयोगी लेखोंके लिखवाने का भी प्रबन्ध किया जायगा । कविताओंके लिए कई कविमहाशयोंने वचन दिया है । गरज यह कि हमने इसे जैन समाजका सर्वोत्कृष्ठ पत्र बनानेका विचार किया है और निश्चय किया है कि इसके द्वारा जैनसमाजको उन सब बातोंका ज्ञान कराया जाय जिनसे कि वह प्राय अज्ञान है और जिनसे केवल जैनसमाचारपत्रोंके पढ़नेवाले वंचित रहते हैं । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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