SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुस्तक-परिचय। ७४७ थे। कुली बनकर वहाँ आपको २१ वर्ष तक रहना पड़ा और अगणित यातनायें सहनी पड़ी । आपको और आपके साथी दूसरे भारतवासियोंको वहाँ जो असह्य दुःख दिये गये थे, उनका इस पुस्तकमें बड़ा ही रोमाञ्चकारी वर्णन है । प्रत्येक भारतवासीको इसका पाठ करके अपने भाइयोंको उन दुःखोंसे बचानेका यत्न करना चाहिए । फिजीद्वीपसम्बन्धी और भी अनेक जानने योग्य बातोंका इसमें उल्लेख किया गया है। ऐसी पुस्तकोंकी लाखोंकी संख्यामें छपकर वितरण होनेकी ज़रूरत है। मा और बच्चा । अनुवादक और प्रकाशक, म० गोवर्धन बी. ए. सम्पादक 'प्रह्लाद', देहली । मूल्य आठ आने । यह 'एमिली' नामक फ्रेंच ग्रन्थके पहले खण्डका अँगरेज़ीपरसे किया हुआ अनुवाद है । पुस्तक बहुत ही अच्छे विचारोंसे परिपूर्ण है; परन्तु खेद है कि अनुवादकी भाषा ठीक नहीं। वाक्यरचना बडी ही गुटल और अँगरेज़ी ढंगकी है । ऐसा मालूम होता है कि मूल पुस्तकका शब्दशः अनुवाद किया गया है । इस दोषके होनेपर भी हम अ. पने विचारशील पाठकोंसे इस पुस्तकके पढ़नेकी सिफारिश करते हैं। छोटे छोटे बच्चोंके पालनपोषण, शिक्षण, शरीररक्षण आदिके सम्बन्धमें उन्हें इस पुस्तकमें बड़ी ही अनोखी बातें मिलेंगी। नवजीवन । यह एक मासिक पत्र है । पहले यह बनारससे पं० केशवदासजी शास्त्रीके द्वारा सम्पादित होकर निकलता था; परन्तु शास्त्रीजीके अमेरिका चले जानेसे बन्द हो गया था । अब इसे बाबू द्वारकाप्रसादजी (सेवक ) ने अपने हाथमें लिया है और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy