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________________ जैनहितैषी - तो दूसरी तरहका माल मिले और ५ ) की चाँदी मिले, अर्थात् हमको २०) की चीजोंके बदले में केवल १०) की चीजें मिलें, और फिर भी हम यह कहें कि चूँकि हमारे पास ५ ) की चाँदी आगई है इस लिए हमारे धनमें ५) की वृद्धि हो गई, तो भला ऐसा धनवान् होना कौन पसंद करेगा ? इस तरह से धनवान् होनेका विचार करनेसे सचमुच बड़े भ्रमपूर्ण परिणाम होते हैं। जो मनुष्य बहुतसी चाँदीको भारतवर्ष में आते हुए देखकर, इस तरह धोखे में आजाते हैं वे उस बच्चे के समान हैं जो किसी बड़े आदमीको एक पूरी रोटी खाते हुए देखकर बड़ा आश्चर्य करता है, क्योंकि उस बच्चेको स्वयं उस रोटीमेंसे एक छोटा टुकड़ा खानेसे ही संतोष हो जाता है । और वह बच्चा यह तो बिलकुल ही नहीं जानता कि वह पूरी रोटी भी उस बड़े आदमीके लिए बिलकुल नाकाफी है।” इत्यादि । • सेठजी ! अब आपने देखा कि केवल सोना-चाँदीके आने जानेका विचार करनेसे देशके धनका पता नहीं लग सकता । ऐसा विचार करना एकान्तवाद है। आपको सभी बातें पर विचार करना चाहिए । संभव है कि देशमें सोना चाँदी तो अधिक आता हो, परन्तु इससे भी जियादा माल देशके बाहर चला जाता हो । तब कहिए सोना-चाँदी देशके धनकी कैसे वृद्धि कर करता है । एक ही अंशको ग्रहण करनेसे बहुधा भ्रम हो जाता है; इस बातको हम एक उदाहरण देकर समझाते हैं। फ्रांस देशके व्यापारका पाँच वर्षका हिसाब देखिए : 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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