SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वेष । हुआ और उसने उसको अपनी अर्दलीमें रख लिया । राजाने उसे नहीं पहचाना । इसके पश्चात् राजा उसको अपने साथ लेकर आखे - टको गया । वहाँ बहुत थक जानेके कारण, एक वृक्षकी छायामें राजा उस युवाकी गोदमें सिर रखके सो गया । पास ही तलवार रक्खी थी, उसे खींचकर राजपुत्रने विचारा कि राजाका सिर उतार अपने पिताके वैरका बदला लूँ । किन्तु उसी समय, उसे अपने पिताका अन्त समयका दिया हुआ उपदेश याद आया । थोड़ी देर में राजा जागा और उससे राजपुत्रने अपना सारा वृतान्त कह दिया । राजा उसका क्षमाका गुण देख कर दंग रह गया और उसने उसके पिताका राज्य उसे वापिस दे दिया । कर, सच्ची उदारहृदय मनुष्य किसी से बैर नहीं करता और जो उसके साथ बुराई करता है उसका बदला वह भलाई में देता है । शूरता ( बहादुरी ) बैर करनेमें नहीं है किन्तु क्षमा करनेमें है । क्षमा वीर पुरुषका भूषण है । भैय्यालाल जैन | * गुजराती पाँचवीं पुस्तकसे अनुवादित । Jain Education International ७०५ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy