SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७०२ जैनहितैषी -~inw शान्ति और सुखकी वृद्धि करनेके नियम । २ सम्भव है कि हमको प्रति दिवस दुःख तथा निराशाका सामना करना पड़े, इस लिए उत्तम होगा कि, हम उसके लिए पहलेहीसे तैयार रहें। २ सब बातोंमें पूर्ण कोई भी नहीं है, अतएव बहुत पानेकी आशा मत करो। ३ प्रत्येक पुरुषके स्वभावको अच्छी तरह जाँचो ताकि उसे समझकर तुम उसका बन्धेन कर सको। ____४ यदि तुम्हारा स्वभाव चिड़चिड़ा है तो बोलनेके लिए शीघ्रता मत करो; यदि तुम क्रोधमें होओ तो किसी कार्यके करनेमें शीघ्रता मत करो। ५ दूसरोंको सुखी बनानेमें अपनी शक्तिभर प्रयत्न करो। ६ जीवनको प्रसन्नताकी दृष्टिसे देखो। ७ अपनेसे जो बड़े हों उनसे शिष्टतापूर्वक और अपनेसे छोटोंसे नम्रतापूर्वक वर्ताव करो । भृत्यों ( नौकरों ) से दयालुतासे बोलो। र जब किसीकी स्तुति करना हो तो सबके समक्ष करो और दोष ढूँढना हो तो अकेलेमें ढूँढो । ९ किसीकी प्रशंसा तो जब कर सको तबही करो; किन्तु किसीको दोष केवल उसी समय दो जब बहुत आवश्यक हो । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy