________________
५५२ wwwwwwwwwwwww
जैनहितैषी
इसमें सन्देह नहीं कि यहाँ ' पाल्यकीर्ति । जिनेश्वरके विशेपण रूपमें आया है, परन्तु इसे कोरा विशेषण ही न समझना चाहिए । यह वास्तवमें उस वैयाकरणका नाम भी है जिसका स्मरण वादिराजसूरिने किया है और मुनीन्द्र तथा जिनेश्वर ( जिनदेव जिसका ईश्वर है ) ये उसके सुघटित विशेषण हैं। __ हमारा अनुमान है कि यह शाकटायनका ही वास्तविक नाम होगा । यह बहुत संभव जान पड़ता है कि पाल्यकीर्ति बड़े भारी वैयाकरण थे और वैयाकरणोंमें शाकटायनका नाम बहुत प्रसिद्ध था, इसलिए लोग उन्हें शाकटायन कहने लगे हों । जिस तरह कवियोंमें कालिदासकी प्रसिद्धि अधिक होनेसे पीछेके भी कई कवि कालिदासके नामसे प्रसिद्ध हो गये थे । जैन शाकटायन महाराज अमोघवर्षके समयमें विक्रम संवत् ९०० के लगभग-बना है और उस समय जैनोंमें शाकटायन, स्फोटायन, जैसे नाम नहीं किन्तु अनन्तकार्ति, अमरकीर्ति, पाल्यकीर्ति जैसे नाम रखनेका ही प्रचार था । हमारा विश्वास है कि अधिक खोज करनेसे हमारा यह अनुमान सच निकलेगा।
सम्पादक। नोट- यहाँसे आगेके नोट श्रीयुत बाबू जुगलकिशोरजीके लिखे हुए हैं।
(१६) ___ एकसंधिभट्टारकका समय । जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय नामका ग्रंथ अय्यपार्य नामके विद्वान् द्वारा शक संवत् १२४ १ अर्थात् विक्रम संवत् १३७६ में रचा गया है। यथाः
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org