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________________ इतिहास-प्रसङ्ग। विदां वरिष्ठौ ” आदि पद्यसे शिवायन और शिवकोटिको जुदा जुदा बतलाते हैं । उधर आराधनाकथाकोशमें समन्तभद्रकी जो कथा है उसमें शिवकोटिको एक राजा बतलाया है और उसका समन्तभद्रके द्वारा जैनधर्ममें दीक्षित होना लिखा है । परन्तु इसमें हमें मन्देह है । कारण शिवकोटि अपने ग्रन्थमें कहीं भी समन्तभद्रका उल्लेख नहीं करते हैं, बल्कि इनसे भिन्न जिननन्दिगाण आदि और ही आचार्योंको अपना गुरु बतलाते हैं। यह संभव नहीं कि जैनधर्मका लाभ करानेवाले समन्तभद्रको वे ग्रन्थ रचते समय सर्वथा ही भूल जायँ । इस विषयमें विद्वानोंको विचार करना चाहिए । हमारी समझमें शिवकोटि, शिवार्य और शिवायन एक ही हैं और वे संभवतः समन्तभद्रसे भी १००-२०० वर्ष पहलेके हैं। शाकटायनके कर्ता कौन थे। कुछ समय पहले प्रो० पाठकने एक लेखमें यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया था कि शाकटायन व्याकरणके कर्ता श्वेताम्बरजैन थे। इस बातका उलेख उस समय जैनहितैषीमें भी कर दिया गया था । अब जुलाईकी सरस्वतीमें श्रीयुत मुनि जिनविजयजी नामके श्वेताम्बर साधु कहते हैं कि शाकटायन दिगम्बर थे, श्वेताम्बर नहीं। मलयगिरि नामके एक आचार्य श्वेताम्बरसम्प्रदायमें बहुत प्रसिद्ध हो गये हैं। उन्होंने अनेक ग्रन्थ रचे हैं । नन्दिसूत्र नामक आगमकी टीकामें वे एक जगह लिखते हैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522807
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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