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________________ पं० अर्जुनलालजी सेठी बी ए.। था। उनकी संस्थाके लिए चन्दा भी उन्हें तीनों सम्प्रदायोंसे मिलता था । कई अजैन विद्यार्थी भी उनके विद्यालयमें शिक्षा पाते थे । देशकी उन्नतिके लिए वे यह भी आवश्यक समझते हैं कि नीच जातियोंको शिक्षा दी जाय । उनके खयालमें ज्ञानदान किसीको भी किया जाय, वह पापका कारण नहीं हो सकता है । अवश्य ही उनके इन कामोंसे बहुत लोग अप्रसन्न थे। सेठीजी जैनसमाजके बड़े नामी व्याख्याता हैं। उनके व्याख्यानोंका प्रभाव भी बड़ा गहरा पड़ता है। नये और पुराने दोनों तरहके ख़यालवाले उनके व्याख्यानोंकी प्रशंसा करते हैं। इस कारण उन्हें प्रायः प्रत्येक जैन सभामें उपस्थित रहना पड़ता था। आज तक उनके देशके एक छोरसे दूसरे छोर तक सैकड़ों व्याख्यान हुए हैं; परन्तु जहाँतक हम जानते हैं समाज और धर्मसे बाहर राजनीति आदिके सम्बन्धमें उनका कोई भी व्याख्यान नहीं हुआ। वे केवल धर्म और शिक्षाके प्रचारक हैं । जैनसमाजमें अभी इतनी योग्यता भी कहाँ है कि वह राजनीतिके. व्याख्यान सुने । जिस समाजकी सारी शक्तियाँ साम्प्रदायिक झगड़ोंमें—शास्त्रार्थोंमें और तीर्थोंकी मुकद्दमेवानीमें खर्च होती हैं उसमें इतना बल कहाँ कि राजनैतिक क्षेत्रमें खड़ा हो सके। सेठीजीका स्वभाव बड़ा ही सुशील, मृदु और प्रभावशाली है। अभिमान उनको छू तक नहीं गया। वे प्रशंसाके भूखे नहीं । वे केवल काम करना जानते हैं। उनका रहन सहन बहुत ही सादा है । सदा अपनी देशी पोशाक पहनते हैं। जयपुरी पगड़ी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522803
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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