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________________ पं० अर्जुनलालजी सेठी बी. ए.। २४९ करनेवाले या अवैतनिक थे। उनके विचारोंका विद्यार्थियों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता था। वे उनके चरित्रसे यह सीखते थे कि मनुप्यका सबसे बड़ा कर्तव्य समाज और धर्मकी निःस्वार्थ होकर सेवा करना है। सेठीजीका धार्मिक ज्ञान बहुत ही बढा चढा है । जैनधर्मके गोम्मटसार, कर्मग्रन्थ आदि सिद्धान्तोंका उन्होंने इतना अच्छा अध्ययन और मनन किया है कि जैनसमाजमें उनकी जोड़का एक भी ग्रेज्युएट नहीं है । जैनधर्मकी सैद्धान्तिक चर्चामें ऐसा शायद ही कोई दिन हो जब उनके दो तीन घंटे न जाते हों । उनकी शंकाओंका समाधान करना बड़े बड़े विद्वानोंके लिए भी कठिन जाता है । जैनधर्मका. हृदय क्या है यह वे जानते हैं। उन्होंने श्वेताम्बरशास्त्रोंका भी एक यति महाशयके पास अच्छा अध्ययन किया है। जैनधर्मकी शिक्षाको वे बहुत ही आवश्यक समझते हैं। जैनधर्मके वे केवल ज्ञाता ही नहीं हैं, उसका आचरण भी पूर्णतया करते हैं। अभी कुछ दिन पहले जेलखानेमें जिन-दर्शन न मिलनेसे उन्होंने आठ दिन तक भोजन न किया था। जैनसमाजके बीसों ग्रेज्युएटोंका ध्यान उन्होंने जैनधर्मके अध्ययनकी ओर आकर्षित किया है और उन्हें समझाया है कि अपने इस रत्नाकरको देखो, इसमें अवगाहन करो; तुम्हें वह शान्ति मिलेगी जो और कहीं भी नहीं मिल सकती है। ___ स्त्रीशिक्षाविभागकी ओरसे सरस्वती कन्यापाठशाला और पद्मावती कन्यापाठशाला दो पाठशालायें स्थापित हैं और उनमें समितिके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522803
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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