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________________ जैनहितैषी नीचे तक जाता है। उससे नीचे कोई असर नहीं होता । एकसी हालत रहती है । इसी तरह भीतरी शांतिकी गति है । जीवनके बड़े बड़े कार्योंके सम्पादन करनेके लिए हमको अपने नित्यके छोटे छोटे कार्योंमें बड़ा ही शांत होना चाहिए । शांति उसी मनुष्यको प्राप्त होती है जो अपने पर काबू पाजाता है, अपनेको वशमें करलेता है, अपनी इंद्रियोंको दमन कर लेता है । इंद्रियदमनका दूसरा नाम शांति है। ___ जब तुमको सांसारिक चिन्तायें सतावें और आपत्तियोंसे तुम्हारा जी घबराने लगे तब तुम्हें चाहिए कि शांतिके पवित्र मंदिरमें प्रवेश करो और थोड़ी देरके लिए सब कुछ भूलकर केवल शांति देवीकी ही आराधना करो । यदि उस समय भी सांसारिक चिंताओं और बाधाओंने तुमको दबा लिया और तुम दब गये तो याद रक्खो तुम स्वयं उनको अपनेसे सबल बनाना चाहते हो । तुम सदा उनसे दबे रहोगे और उन पर कभी विजय नहीं पासकोगे। चिंता और आपत्तिके समय शांति प्राप्त करनेकी यह विधि है कि जिन बातोंसे तुमको घबराहट होती हो उनको एक एक करके समझो और अपनी सम्पूर्ण संकल्प शक्तिको उन पर लगा दो । तुम देखोगे कि जैसे सूरजके निकलते ही तमाम अंधेरा दूर हो जाता है ऐसे ही तुम्हारी तमाम घबराहट अपने आप दूर हो जायगी । उसके बाद जो शांतिका चमत्कार तुम्हारे हृदयमंदिरमें प्रकाशित होगा और जो नवीन शक्ति तुमको मालूम होने लगेगी वहाँसे पूर्ण शांतिकी प्राप्तिका आरम्भ होगा । बस फिर तुम बड़ीसे बड़ी आप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522803
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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