SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पं० अर्जुनलालजी सेठी बी. ए. । सेठीजी नौकरी छोड़कर जैनमहाविद्यालयके डेप्यूटेशनमें आकर शामिल हुए । इस डेप्यूटेशनमें साहु जुगमन्दरदासजी, लाला बद्रीदासजी, बाबू शीतलप्रसादजी आदि अनेक सज्जन थे। सेठीजीकी अनेक शहरोंमें अच्छी जोरदार अपीलें हुई और उनका फल भी अच्छा हुआ । लगभग १५ हजार रुपये विद्यालय फण्डको मिल गये । इसके बाद सेठीजी जैनमहाविद्यालय मथुराके आनरेरी अध्यक्ष नियत हुए । जब विद्यालय सहारणपुर चला गया, तब वहाँ भी वे गये । लगभग एक वर्ष तक उन्होंने विद्यालयकी सच्चे हृदयसे सेवा की। उस समय जैनमहासभा के कार्यकर्ताओं में मतभेद बहुत बढ़ गया था । समाचारपत्रोंमें एक दूसरेके विरुद्ध लेख प्रकाशित हो रहे थे । इससे तथा और भी कई कारणोंसे सेठीजी विद्यालय से अलग हो गये और १९०६ में अपने घर जयपुर लौट गये । २४५ अब उनकी इच्छा एक स्वतंत्र संस्था स्थापित करनेकी हुई और थोड़े ही दिनों में उन्होंने अपने कई मित्रोंकी सहायतासे 'जैनशिक्षा प्रचारक समिति' नामकी संस्था खोल दी । इस संस्थाकी उन्होंने आश्चर्यजनक उन्नति की और कुछ समयके बाद उसे Jain | Educational Society of India के रूपमें परिवर्तित कर दिया । समिति जिस प्रणाली से काम करती थी और जो काम कर रही थी इसका जिन लोगोंको परिचय है वे ही जानते हैं कि सेठीजी किस श्रेणी मनुष्य हैं और जैनसमाजके लिए उन जैसे पुरुषोंकी कितनी अधिक अवश्यकता है । पाठक यह जानकर आश्चर्य करेंगे कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522803
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy