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उठो प्यारो, उठो प्यारो ।
उठो प्यारो, उठो प्यारो !
( श्रीयुत बाबू अर्जुनलालजी सेठी बी. ए. के महेन्द्रकुमार नाटकसे उद्धृत | )
हुआ है भर उन्नतिका, उठो प्यारो उठो प्यारो । वह देखो ज्ञानका दिनकर, उठो प्यारो उठो प्यारो ॥ १ ॥
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कला कौशलके पक्षीगण, सुनाते शब्द हैं मनहर, पढ़ो अध्यात्मकी वाणी, उठो प्यारो उठो प्यारो ॥ २ ॥ अविद्याका अँधेरा सब, मिटा जाता है दुनियासे । जगा है चीन भी देखो, उठो प्यारो उठो प्यारो ॥ ३ ॥
सँभालो अपने घरको अब जगा दो बूढ़े भारतको । यह गुरु है सर्व देशोंका, उठो प्यारो उठो प्यारो ॥ ४ ॥
क्या हिन्दू क्या मुसल्मां, और जैनी बौद्ध ईसाई । करो अब मेल आपसमें, उठो प्यारो उठा प्यारो ॥ ५ ॥
जहाँके अन्न पानी से बना यह तन हमारा है । करो सब उस पै न्योछावर, उठो प्यारो उठो प्यारो ॥ ६ ॥
बजाके वाजे शिक्षाके, भरो आलाप साहसका । बनोगे पात्र लक्ष्मी, उठो प्यारो उठो प्यारो ॥ ७ ॥
नोट – इस कविता से भी सेठजीके विचारोंका पता लगता है । देशसेवाको वे अपना कर्तव्य समझते थे और उसके लिए आपसमें मेलजोल बढ़ाना, अज्ञानान्धकारको दूर करनेके लिए शिक्षा विस्तार करना और इसी कार्य में अपना तन-मन-धन न्योछावर कर देना, इन बातोंका उपदेश देते थे । राजद्रोह के विचारोंकी उनमें गन्ध भी न थी ।
- सम्पादक ।
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