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हृदयोद्वार।
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काई आवश्यकता नहीं है । जो संसारसे दूर भागना चाहते हैं और उसके साथ ही परोपकारकर्मसे भी दूर रहना चाहते हैं वे हमारा क्या भला करेंगे? ___ आशा है कि उदासीनाश्रमोंके संचालक इस लेख पर ध्यान ५ देंगे और ऐसा प्रयत्न करेंगे जिससे ये आश्रम जैनसमाजकी प्रगतिमें
कुछ सहायक हों-उसमें बाधा डालनेवाले या निष्कर्मा बनकर हमारे लिए भारभूत न हो।
हृदयोगार। [ श्रीयुक्त बाबू अर्जुनलालजी सेठी बी. ए. के बनाये हुए ‘महेन्द्रकुमार'
नाटकसे उद्धृत एक पद्य । ] कब आयगा वह दिन कि बनूं साधु विहारी ॥टेक ॥ दुनिया में कोई चीज़ मुझे थिर नहीं पाती, और आयु मेरी यों ही तो बीती है जाती। मस्तक पै खड़ी मौत वह सबहीको है आती, राजा हो चाहे राणा हो हो रंक भिखारी ॥१॥ संपत्ति है दुनियाकी वह दुनियामें रहेगी, काया न चले साथ वह पावकमें दहेगी। इक ईट भी फिर हाथसे हर्गिज न उठेगी, बँगला हो चाहे कोठी हो हो महल अटारी ॥ कब० ॥ २ बैठा है कोई मस्त हो मसनदको लगाये, माँगे है कोई भीख फटा वस्त्र बिछाये।
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