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________________ उदासीन आश्रय । १८१ पकारके काम उन्हें सोंपे जावें और वे छोटेसे छोटा और बड़ेसे बड़ा काम करने के लिए हर समय तत्पर रहें । ये आश्रम उसी ढंगके होना चाहिए जैसी कि माननीय गोखलेकी सर्वेंट आफ इंडिया सुसाइटी' ( भारतसेवकसमिति ) है । जिस तरह उसके मेम्बर राजनीतिको आगे रखकर सब काम करते हैं उसी तरह इन आश्रमोंके उदासीनोंको धर्मको और चारि - को आगे रखकर काम करना चाहिए । उदासीनाश्रमोंको हम इसी रूपमें देखना चाहते हैं और जहाँतक हम सोच सकते हैं जैनसमाजका कल्याण भी ऐसे ही आश्रमोंसे हो सकता है। इसके विपरीत यदि इनमें नारि मुई घर संपति नासी, मूड़ मुड़ाय भये सन्यासी । इस अवस्थाके सन्यासियों या उदासीनोंकी पालना होगी, अथवा जिन्हें सच्चा वैराग्य तो हुआ नहीं है किन्तु गृहस्थाश्रमको अच्छी तरह चलाने योग्य पुरुषार्थके अभाव में उसे झंझट समझकर जो केवल अपनी सुखशान्तिके लिए दुनियादारीकी रस्सी तुड़ाकर भाग आये हैं उन्हें भरती किया जायगा, तो ऐसे आश्रमोंकी कोई ज़रूरत नहीं हैं । जो अपने स्वार्थसे—अपनी ही सुख शान्तिसे उदासीन नहीं हैं और दूसरोंके कल्याण में जिन्होंने अपने आपको नहीं भुला दिया है. उन नामके उदासीनोंसे जैनसमाजका क्या कल्याण हो सकता है ? 1 ऐसे उदासीनोंकी इस समय कमी भी नहीं हैं। सैकड़ों ऐलक, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522802
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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