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________________ उदासीन-आश्रम। १७९ को एक साथ मिलाकर विशेष शक्तिके साथ काम करना सिखलानेके लिए कोई साधन चाहिए और हमारी समझमें उदासीनाश्रम इसके लिए बहुत अच्छा साधन है। ___ अभी तक यह मालूम नहीं हुआ है कि ये आश्रम अपना काम किम ढंगसे और किस पद्धतिसे चलावेंगे, इस लिए यदि इस विषयमें हम अपने विचारोंको संक्षेपमें निवेदन कर दें तो कुछ अनुचित न होगा। जिन लोगोंके हृदयमें वास्तविक स्वार्थत्याग और परार्थपरताके भाव उत्पन्न हुए हैं वे ही लोग आश्रममें भरती किये जावें। बस, यही एक बात उनकी जाँचकी कसौटी होनी चाहिए। सबसे पहले उन्हें योग्यताका सम्पादन कराया जाय । योग्यताको हम दो भागोंमें बाँटते हैं-एक तो ज्ञानसम्बन्धी योग्यता और दूसरी चारित्रसम्बन्धी योग्यता । इन दोनों योग्यताओंके बिना आज कलके समयमें न कोई काम ही अच्छी तरह किया जा सकता है और न सफलता ही प्राप्त हो सकती है । इस समय ज्ञान और चारित्र दोनोंकी आवश्यकता है। आश्रमवासियोंको धार्मिक और व्यावहारिक दोनों प्रकारकी उच्चश्रेणीकी शिक्षा प्राप्त करना चाहिए। इसके बिना इस ज्ञान विज्ञानके युगमें कोई काम नहीं किया जा सकता। चारित्रसम्बन्धी योग्यताको हम बहुत ही आवश्यक समझते हैं, क्योंकि इसके बिना परार्थ तो कठिन बात है स्वार्थसाधनके काम भी अच्छी तरह सम्पन्न नहीं हो सकते । जिसने इन्द्रियों और मनको वशमें रखनेका अभ्यास नहीं किया, अपनी आवश्यकताओंको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522802
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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