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________________ १६४ जैनहितैषी ३-यह करता है जो अपने मालिक पै कुरबों।.. खिलौना है बच्चोंका घरका निगहबां ॥ ४-भरा है वह खूने-मुहब्बत रगोंमें । सगोंमें न देखा जो देखा संगोंमें ॥ ५-जेहांमें है मशहूर इसकी भलाई । मगर नाममें है क्या इसके बुराई ? ६-किसी आदमीको कहें हम जो कुत्ता। तो मुंह पर वहीं दे पलट कर तमाचा ॥ ७-पड़े मार खाकर भी वह दुम दबाना । कि दुर्शवार होजाय पीछा छुड़ाना ॥ ८-कहा उससे 'लुकमान' ने बात यह है। . खुली बात है कुछ मुइँम्मा नहीं है । ९-यह माना, है बेशक वफ़ादार कुत्ता। बड़ा जांनिसार और गमवार कुत्ता ॥ १०-मगर किससे है उसकी यह खरख्वाही । ___यह टुकड़ों पै है सबके घरका सिपाही ॥ ११-फ़कत आदमी पर है सब जांनिसारी । मगर क़ौमकी कौम दुश्मन है सारी ॥ १२-यह रखता है दिलमें मुहब्बत पराई । खटकते हैं इसकी निगाहोंमें भाई ॥ . १ प्राण । २ बलि । ३ रखवाला । ४ कुत्तोंमें ।' ५ जहानमें-दुनियामें । ६ कठिन । ७ गूढ़बात। ८ प्राणन्योछावर करनेवाली । ९ क्षमावान् । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522802
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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