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________________ विविध प्रसंग | १४७ 1 बहुत सहायता मिलती होगी; परन्तु अजातशत्रुका उस पर अधिकार हो जानेसे वह सहायता बन्द हो गई होगी । इस कारण यह संभव है कि जैनोंने उसके विषयमें पिताके वधकी बात गढ़ ली हो कि जिससे लोगोंको यह मालूम हो कि इस घोर पापके कारण जैनोंने उससे सहायता लेना छोड़ दी है और बौद्धमतके वृद्धिरूप प्रभावको रोकने के लिए प्रसिद्ध कर दिया हो कि बौद्धमतमें पितृवध तक किया जाता है । संभव है कि मेरे इस अनुमानसे प्राचीन इतिहासकी एक ग्रन्थि सुलझ हो जावे " । हमारी समझमें जैनोंपर जो यह अपराध लगाया जाता है कि उन्होंने धर्मद्वेष के कारण अजातशत्रुको पिताका वध करनेवाला बतलाया है, सर्वथा 'असत्य है । क्योंकि जैनकाथाकरोंने तो अजातशत्रुको उलटा पिताके अपराधसे बचाने की चेष्टा की है । उन्होंने लिखा है कि अजातशत्रु श्रेणिकको बन्धमुक्त करनेके लिए जा रहा था कि श्रेणिकने भयभीत होकर स्वयं अपने प्राण दे दिये; पुत्रने उन्हें नहीं मारा ! हाँ, इस बातका उत्तर जैनकथासे नहीं मिलता कि श्रेणिक किस कारण कैद किये गये थे । आगे चलकर श्रवणबेलगुलके उस शिलालेखकी चर्चा की गई है जिसमें प्रभाचन्द्र और भद्रबाहुका उल्लेख है । लद्दूमहाशयने डा० विंसेंट स्मिथके इतिहासके आधारसे कई युक्तियाँ देकर यह सिद्ध किया है कि प्रभाचन्द्र ही चन्द्रगुप्त मौर्य थे; उनका यह जिनदीक्षा लेने के बाद का नाम था । उनके कथनका सार यह है कि शिलालेख में यद्यपि गुरुपरम्परामें पहले एक भद्रबाहुका उल्लेख करके आगे भद्रबाहुका नाम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522802
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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