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________________ विविध प्रसंग। १४५ ग्रन्थोंसे कम प्राचीन नहीं हैं-पता लगता है कि महावीर स्वामीके कुछ शिप्य बुद्धदेवके पास उनके मतका खण्डन करनेके लिए गये थे । बौद्ध ग्रन्थों में भी ऐसी घटनाओंका उल्लेख है। इससे मालूम होता है कि जैनधर्म बौद्धधर्मसे प्राचीन है।" आगे चलकर उन्होंने दोनों मतोंकी भिन्नता सिद्ध करते हुए कहा कि “जैनमतके कुछ सिद्धान्त बौद्धधर्मसे बिलकुल विपरीत हैं । स्वयं बुद्धदेवका निर्वाणके विषयमें क्या विश्वास था यह हमें मालूम नहीं । कारण, एक शिप्यके प्रश्न करने पर उन्होंने उसे यों ही टाल दिया था । परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि बौद्ध ब्राह्मणोंके समान किसी एक सर्वव्यापी आत्माको नहीं मानते । और तो क्या उनके सिद्धान्तमें म्वयं आत्माके अस्तित्वकी भी आवश्यकता नहीं है । जैनी आत्माको सर्वव्यापी तो नहीं मानते, परन्तु मानते अवश्य हैं। बौद्ध मतमें जो पाँच स्कन्ध तथा उनके भेद प्रभेद माने गये हैं जैनमत उन्हें नहीं मानता । जैनधर्मके माननेवाले केवल जानवरों और पेड़ोंमें ही नहीं किन्तु जल और खानिमे ताजी निकली हुई धातुओंमें भी जीव मानते है। इस बातमें ये हिन्दुओंसे भी बढ़ गये हैं और इसीसे इनके अहिंसाक्षेत्रका विस्तार बहुत बढ़ गया है । जैनोंमें हिन्दुओंके समान आत्मीक उन्नतिके भिन्न भिन्न आश्रम हैं; परन्तु बौद्धमतमें ऐसे कोई आश्रम नहीं है ॥" कुणकके द्वारा श्रेणिकके मारे जानेके विषयमें लद्महाशयने एक नई कल्पना की है। कहा है कि " वैशालीका राजा चेटक महावीर भगवानका मामा था । चेटककी कन्या चेलना मगधनरेश बिम्बिसार या श्रेणिकके साथ ब्याही गई थी। श्रेणिक शेष. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522802
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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