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________________ विविध प्रसंग। पहले अर्थात् विक्रमसंवत् ६० का बना हुआ है और इस कारण यह बात भी कही जा सकती है कि अभी तक केवल पुराण ही नहीं और भी जितने दिगम्बर जैनग्रन्थ उपलब्ध हैं उन सबसे यह प्राचीन है। उमास्वामी, कुन्दकुन्दाचार्य आदिके विषयमें कहा जाता है कि वे विक्रमकी पहली शताब्दिमें हुए हैं, परन्तु इसके लिए अभी तक कोई अच्छा प्रमाण नहीं मिला है, बल्कि साधुपरम्पराका विचार करनेसे वे तीसरी चौथी शताब्दिके लगभगके सिद्ध होते हैं। ऐसी अवस्थामें इसी ग्रन्थको सबसे अधिक प्राचीनता प्राप्त होती है और इसके निर्माणका समय बिलकुल निश्चित हैअनुमानोंके आधार पर इसकी स्थिति नहीं है। - दिगम्बरसम्प्रदायके ग्रन्थोंके अनुसार श्वेताम्बरसंघकी उत्पत्ति विक्रमकी मृत्युके १३६ वर्ष बाद हुई है और श्वेताम्बर ग्रन्थोंके अनुसार दिगम्बरोंकी उत्पत्ति भी लगभग इसी समयमें हुई है। अर्थात् विक्रमादित्यकी या शक विक्रमकी दूसरी शताब्दिमें जैनधर्ममें दिगम्बर और श्वेताम्बर दो भेद हो गये हैं। यदि यह सत्र है तो कहना होगा कि यह 'पउमचरिय' उस समयका बना हुआ है जब कि महावीर भगवान्का धर्म भेदोपभेदरहित था; उसमें दिगम्बर-श्वेताम्बर भेदोंका जन्म नहीं हुआ था। यदि इन्द्रनन्दिकृत 'श्रुतावतारमें बतलाई हुई मुनिपरम्परा ठीक है तो कहना होगा कि एकादशांगधारी पाँचवें आचार्य कंसाचार्यके समयमें यह ग्रन्थ रचा गया है। श्रीरविषेणाचार्यके पद्मपुराणको सामने रखकर हमने इस ग्रन्थके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522802
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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