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प्राचीन मैसूरकी एक झलक ।
चंद्रनाथकी प्रतिमा है । यह मंदिर ई० सन् १६७३ के लगभगका बना मालूम होता है। यहाँ पर एक बड़ा भारी पत्थर है, निस पर कई लेख मिले हैं । इसके उपरी अंश पर जैनगुरुओंकी प्रतिमायें हैं। कुछ प्रतिमाओंके नीचे उनके नाम भी लिखे हैं । इस मंदिरके दरवाजेकी दायीं ओर एक स्त्रीकी मूर्ति हाथ जोड़े खड़ी है। अभी तक लोग इसे गुल्लका यक्षी समझते थे; परन्तु इसके नीचे अब एक लेख मिला है जिससे मालूम होता है कि यह एक सेट्टीकी पुत्री है, जो वहीं मर गई थी। यहाँके पर्वत पर तीन लेख और मिले हैं। चंद्रगिरि पर्वत पर भी कई मंदिर हैं। इनमेंसे दो मंदिरोंके नाम 'शान्तीश्वर बस्ती' और 'सुपार्श्व बस्ती' हैं। इनके बीचमें एक इमारत है, जो अब रसोईघरका काम देती है । इस इमारतमें एक मूर्ति बाहुबलि ( गोमठ ) के भाई भरत. की है जो अधूरी बनाकर छोड़ दी गई है । मूर्तिसे कुछ दूर एक लेख है जिसमें लिखा है कि ' अरिठ्ठो नेमिगुरुने........बनवाया' । क्या बनवाया, यह मिट गया है । लोग यह कहते हैं कि अरिठ्ठो नेमि एक शिल्पकारका नाम है, जिसने गोमठ स्वामीकी विशाल मूर्ति बनाई थी; परन्तु यह ठीक नहीं। क्योंकि शिलालेखसे मालूम होता है कि 'अरिठ्ठो: नेमि' तो बनवानेवालेका नाम है-यह नहीं मालूम कि उन्होंने क्या बनवाया । यहाँ पर और भी कई लेख मिले हैं । ब्रह्मदेव मंदिरके सामने उन यात्रियोंके नाम मिले हैं जो यहाँके मंदिरोंको देखनेके लिए किसी समय आये थे । 'कच्चिन दोडे' नामक तालके पास एक लेख मिला है, जिसमें लिखा है कि
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