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दुर्बुद्धि।
परलोकमें भी शान्ति नहीं मिल रही है-वह मानों व्यथित होकर यही प्रश्न करती फिरती है कि-"पिताजी तुमने ऐसा क्यों किया ?"
कुछ दिन तक मेरा यह हाल रहा कि मैं गरीबोंका इलाज करके उनसे फीसके लिए तकाजा न कर सकता था । यदि किसी लड़कीको कोई बीमारी हो जाती थी तो ऐसा मालूम होता था कि मेरी मावित्री ही सारे गाँवकी बीमार लड़कियोंके रूपमें रोग भोग रही है। ___ एक दिन मूसलधार पानी बरसा । सारी रात बीत गई, पर वर्षा बन्द न हुई । जहाँ तहाँ पानी ही पानी दिखाई देने लगा । घरसे बाहर जानेके लिए भी नावकी जरूरत पड़ने लगी !
उस दिन मेरे लिए मालगुज़ार साहबके यहाँसे बुलावा आया था । भालगुजारकी नावके मल्लाहोंको मेरा जरा भी विलम्ब सह्य नहीं हो रहा था; वे तकाजे पर तकाजे कर रहे थे।
पहले जब कभी ऐसे मौके पर मुझे कहीं बाहर जाना पड़ता था, तब सावित्री मेरे पुराने छातेको खोलकर देखती थी कि उसमें कहीं छिद्र तो नहीं है और फिर कोमल कण्ठसे सावधान कर देती थी कि “ पिताजी, हवा बहुत तेजीसे चल रही है और पानी भी खूब वरस रहा है, कहीं ऐसा न हो कि सर्दी लग जाय । " उस दिन अपने शन्य शब्दहीन घरमें अपना छाता स्वयं खोजते समय मुझे उस स्नेहपूर्ण मुखकी याद आ गई और मैं सावित्रीके वन्द कमरेकी ओर देखकर सोचने लगा-जो मनुष्य दूसरेके दुःखोंकी परवा नहीं करता है, भगवान् उसे सुखी करनेके लिए उसके घरमें सावित्री जैसी स्नेहकी चीज़ कैसे रख सकता है ? यह सोचते सोचते
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