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जैनहितैषी। श्रीमत्परमम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात्सर्वज्ञनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥
११ वाँ भाग
कार्तिक, मार्गशीर्ष वीर नि० सं० २४४१ ।
२ अंक -
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प्रार्थना। Foregangroverngregangangers
धनी-निर्धनीके धनी, ऊँचनीचके मीत । लघुसे लघुतर कीटके, पालक पिता पुनीत ॥ .
मनुज-जाति तक ही नहीं, मर्यादित तव दृष्टि । धर्मदेशना-वृष्टिसे, की सुखमय पशु-सृष्टि ॥
(३) किया न केवल आपने, जैनोंका उपकार। .. दयाधर्मसे आपके, उपकृत सब संसार ॥ ...
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